दादाभाई नौरोजी पर निबंध | Essay on Dadabhai Naoroji in Hindi

1. प्रस्तावना:

दादाभाई नौरोजी भारत के एक ऐसे सर्वमान्य नेता थे, जिनके आदर्शों और विचारों से प्रभावित होकर देशवासियों ने उन्हें राष्ट्र पितामह की संज्ञा दी । वे यह मानते थे कि- ”स्वराज्य तथा स्वशासन के बिना भारत कभी भी महानता को प्राप्त नहीं कर सकता ।” भारत की आजादी में उनके द्वारा दिया गया योगदान अद्वितीय है ।

2. जीवन परिचय:

दादाभाई का जन्म 8 सितम्बर 1825 को बम्बई में एक पारसी पुरोहित परिवार में हुआ था । बाल्यावस्था में ही उनके पिता का देहावसान हो गया था । उनकी माता ने उन्हें कठोर आर्थिक परिस्थितियों का सामना करते हुए पढ़ने हेतु शाला भेजा । मां ने उन्हें सत्यनिष्ठा व ईमानदारी के अच्छे संस्कार दिये थे ।

उन्होंने बहुत-सी पुस्तकों के साथ-साथ पारसी धर्मग्रन्थों का भी अध्ययन किया । उनकी विनम्रता व सादगी को देखकर सभी कहा करते थे कि- ”एक दिन यह जरूर एक महान् पुरुष बनेगा ।” उनके प्रिंसिपल महोदय ने उन्हें इंग्लैण्ड जाकर शिक्षा पूरी करने हेतु कुछ वित्तीय सहायता भी देनी चाही, किन्तु दुर्भाग्य कि वे नहीं जा पाये ।

एलफिस्टन कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर सम्मानित होकर 6 वर्षों तक उन्होंने अपनी सेवाएं दीं । देश सेवा, समाज सेवा हेतु उन्होंने कई कार्य किये, जिनमें निःशुल्क पाठशालाओं आदि की व्यवस्था थी । देश सेवा में रहते हुए राजनीतिक गुटबाजियों से वे कोसों दूर रहे । 30 जून 1917 को इस महान् सपूत ने इस संसार से अन्तिम विदा ली ।

3. स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका योगदान:

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स्वतन्त्रता आन्दोलन में दादाभाई नौरोजी का महत्त्वपूर्ण योगदान था । वे ब्रिटिश सरकार की कई नीतियों पर विश्वास भी रखते थे । उनका यह मानना था कि ब्रिटिश शासन प्रणाली में सुधार लाकर उसे जनहितकारी बनाया जा सकता है । वे ऐसे उदारवादी नेता थे, जो हिंसात्मक आन्दोलन के विरोधी थे । नौरोजी शान्तिपूर्ण तरीकों से स्वतन्त्रता के पक्षधर थे ।

अंग्रेजों की न्यायप्रियता और सदाशयता में उनका अटूट विश्वास था । यह उनकी उदार सोच का उदाहरण है । उन्होंने ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन की स्थापना कर भारतीयों की सहायता करने और उनकी स्थिति सुधारने हेतु प्रयास किये । भारतीयों की निर्धनता व अशिक्षा के लिए ब्रिटिश शासन को जिम्मेदार बताया । यह बताया कि ब्रिटिश राज्य में रहने वाले भारतीयों की औसत आमदनी 20 रुपये प्रतिवर्ष भी नहीं है ।

अंग्रेज सरकार ने जब उनकी इस बात पर अविश्वास किया, तो उन्होंने ”पावर्टी एण्ड अन ब्रिटिश रुल इन इण्डिया” नामक पुस्तक-लिख डाली । सन् 1885 में मिस्टर ए०के० ह्यूम के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी के गठन में योगदान दिया । 1886 के कलकत्ता अधिवेशन के वे अध्यक्ष भी रहे । इसी वर्ष उन्होंने तीन बार इंग्लैण्ड का प्रवास किया ।

1892 में ब्रिटिश पार्लियामेन्ट के सदस्य चुन लिये गये । आई०सी०एस० की परीक्षा इंग्लैण्ड और भारत में एक साथ कराने हेतु प्रयास किया । 1893 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के वे सभापति चुने गये । 1906 में तीसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए । 1907 में सूरत अधिवेशन में नरम-गरम दल के रूप में विभाजित होने वाली कांग्रेस को काफी प्रयासों के फलस्वरूप एक न कर सके ।

4. उपसंहार:

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नौरोजी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम मे अति उदारवादी नेता के रूप में जाने जाते रहे हैं । ब्रिटिश सरकार के प्रति उनका झुकाव पूर्णत: न होकर भारत की आजादी के प्रति रहा, ऐसा कहना गलत न होगा । वे ब्रिटिश शासन के समर्थक भी थे और स्वराज्य के हिमायती भी थे । उनका कार्य भारतवासियों के लिए महत्वपूर्ण रहा ।

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