Here is an essay on ‘Idealism’ in Hindi language!

आदर्श मानव मस्तिष्क की दशा का प्रतीक है । यह मानव चेतना की प्रधानता को स्वीकार करता है । दार्शनिक अर्थ में आदर्शवाद वह अभिमत है, जिसमें मानव के क्रियाकलाप उसके अस्तित्व व ज्ञान को आधार प्रदान करते है । यह क्रियाकलाप किसी भौतिक पदार्थ या प्रक्रिया से नियंत्रित नहीं होते, वरन उसका अपना स्वतन्त्र अस्तित्व होता है ।

आदर्शवाद की विचारधारा भौतिकवाद व प्रकृतिवाद की विरोधी है । आदर्शवाद में मानव के उन स्वतन्त्र विचारों का समावेश किया जाता है, जो पक्षपात, भेदभाव की भावना से रहित होते है । वह विश्व को निष्पक्ष भावना से देखता है, यह भावना उसके ज्ञान, बुद्धिचातुर्य पर निर्भर करती है इसी के आधार पर वह विश्व के बारे में जानकारी प्राप्त करता है ।

आदर्शवाद इसी बात को मानता है कि विश्व सम्बन्धी ज्ञान व्यक्ति विशेष के अनुभव पर आधारित होता है । उसके मस्तिष्क में उपजे विचार हो उसके आदर्श हैं । कोई भी ऐसा वास्तविक जगत नहीं है, जो मानव विचार के बिना रचित हुआ हो ।

आदर्शवाद के समर्थक गुएलके (Guelke) का कहना है कि मानव ने अपने मस्तिष्क में ऐसे विचारों का सृजन किया है, जो उसकी आशाओं एवं आकाँक्षाओं को संतुष्ट कर सके । इसके लिए वह पृथ्वी के दृश्य में परिवर्तन करता है तथा उससे अपनी इच्छानुसार लाभ लेने की कोशिश करता है । मानव का व्यवहार उसके मन द्वारा नियंत्रित होता है । मन में जो विचार आते है, उसी के अनुसार वह क्रियाएँ करता है । उदाहरण के लिए उसने सोचा कि यूरोप व एशिया के बीच की समुद्री दूरी को कम किया जाए ।

उसके मस्तिस्क ने ऐसे स्थल अर्थात स्वेज जलडमरूमध्य की तलाश की जहाँ से लाल सागर व भूमध्य सागर को जोड़कर इस दूरी को कम किया जा सके । इस विचार के क्रियान्वन से इस क्षेत्र का परिदृश्य ही बदल गया । स्वेज नहर के निर्माण ने मानव की आकांक्षा को पूरा किया व अपने विचार द्वारा इस क्षेत्र का भूगोल बदल दिया ।

कभी-कभी मानव मस्तिष्क मंथन द्वारा अपने क्रियाकलापों पर पुनर्विचार करता है । ऐसा तब होता है, जब उसके किसी विचार ने ऐसी घटनाओं को जन्म दिया, जो उसके लिए अधिक अनुकूल व खरी नहीं उतरी । अत: वह उनमें सुधार करने की कोशिश करता है । उसका यह मंथन अथक विचार वर्सटेहन (Verstehen) कहलाता है । जिसका अर्थ समझ अथवा और अधिक ज्ञान प्राप्त करना कहलाता है । वह देखता है कि उसकी क्रियाओं से विश्व जगत में क्या प्रतिक्रिया हुई ।

उसकी क्रियाएँ अन्य लोगों की आशाओं के अनुरूप न होने से उसको अपने मस्तिष्क पर पुनर्विचार करना पड़ता है । वह अपने विचारों को और तर्कसंगत बनाने की कोशिश करता है । उदाहरण के लिए हमारे सामने यह प्रश्न आता है कि पंजाब के किसान वर्तमान में धान का उत्पादन क्यों करने लगे हैं ।

इसका उत्तर यह है कि यहाँ के किसान को इस बात की समझ आ चुकी है कि धान की खेती द्वारा वह अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकता है । उसकी व्यवहारिक मानसिक सोच ने यहाँ धान की उत्पादकता को ऊँचाई के स्तर पर पहुँचा दिया है ।

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इस प्रकार समझ एक ऐसी विचार की दशा का प्रतीक है, जिसमें मानव के निर्णय तर्कसंगत व उपयुक्त ठहराये जाते है । जैसे झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले लोग अपने चारों ओर गंदगी, बदबू का वातावरण रखते हैं, उनके मकान फटे- टूटे चिथड़ों का ढांचा होते है, लेकिन फिर भी वह इस अमानवीय वातावरण में रहकर आनन्द अनुभव करते है, क्यों ?

ऐसे में यदि उनके विचारों को जाना जाए तो वह कहेगें कि यहाँ रहकर वह अपनी जीविका को आसानी से चला सकते है, कार्य स्थल के समीप रहते है, रहने की जगह के किराए से बच जाते है, महानगरों में उनके लिए उचित आवास स्थलों का अभाव होता है अत: उनके विचार तर्कसंगत ही कहे जाएगें । उन्हें वहाँ रहने की ऐसी समझ आ चुकी है, जिसको बदलना या प्रभावित करना सम्भव नहीं है ।

उनकी यह भावना ही उनका आदर्श है । इस प्रकार मानव कहीं फसल उगाता है, तो कहीं आवास बनाता है, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता है, उसके यह कार्य तर्कसंगत विचारधारा का परिणाम है वह सोच समझकर ही यह कार्य करता है । कभी-कभी लोगों द्वारा यह विचार सामने रखा जाता है कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, उसके क्या अच्छे परिणाम हैं । अत: वह पुनर्विचार द्वारा अपने कार्यों को और भी तर्कसंगत बनाने की कोशिश करता है ।

आदर्शवादी विचारक इस चिन्तन को सामाजिक विज्ञान का अंग मानते हैं । वह इसे प्राकृतिक विज्ञानों से अलग रखते है । मानव के मन में समय-समय पर जो विचार उपजते हैं, वह उसके अनुभव व ज्ञान पर आधारित होते हैं । ऐसे में पृथ्वी के संसाधनों का प्रयोग वह अपनी इच्छानुसार अलग-अलग तरह से करने लगता है ।

वह जिस भूमि पर आज कृषि कर रहा है, क्योंकि एक समय उसके विचार में वह भूमि कृषि की दृष्टि से अधिक उपयोगी थी, लेकिन आज वह उस पर रिहाइशी या औद्योगिक कार्यों का जमाव कर रहा है, इनका स्थापन उसे और भी उपयोगी दिखाई पड़ता है ।

अत: मानव द्वारा सृजित भूदृश्य उसकी लम्बी सोच, तर्कसंगत विचार शैली का परिणाम होता है । इसीलिए वह विचारों में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखता है । मानव भूगोल मानव और वातावरण के बीच के सम्बन्धों का विवेचन है । लेकिन वह कभी मानव को प्रधान मानता है, तो कभी वातावरण को । उसकी सोच में सदैव परिवर्तन होता रहता है ।

वह उन कारणों की खोज करता है कि क्यों कोई कार्य वहाँ किया जा रहा है ? जैसे वनों को काटा जाना बस्तियों का सघन अथवा प्रकीर्ण बसाव खेतों का प्रारूप आदि कारणों से क्यों ऐसा है ? उसने किन परिस्थितियों में इस प्रकार के सांस्कृतिक भूदृश्य का निर्माण किया है ।

ऐसा उसके ऐतिहासिक शोध किये जाने पर जोर देता है । कि क्या उसके द्वारा पूर्व में किए गए कार्य वर्तमान में सही व उपयुक्त है या नहीं । जिन वनों को वह काट रहा था, उस पर उसका क्या प्रभाव पड़ा । यदि यह क्रिया कम लाभकारी सिद्ध होती है, तो उस विचार को बदलना पड़ता है । जैसे महाराजाओं के महल प्रारम्भिक तौर पर उनके रहने, व प्रशासन चलाने के उद्देश्य से विकसित किए गए थे, लेकिन आज यह महल धरोहर होटल (Heritage Hotel) के रूप में प्रयोग किए रना रहे है, जैसे जोधपुर का उम्मेद भवन ।

इसी प्रकार दिल्ली का लाल किला पहले शाहजहाँ की सेनाओं को रखने का स्थान था । आज पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया है । इस प्रकार समय का बदलाव मानव की सोच को बदल देता है और उसे और भी हितकारी बना देता है । आदर्शवादी विचारक उन तथ्यों की खोज करता है कि किन कारणों से उस समय यह कार्यकलाप सम्पन्न हुए थे, और आज के परिप्रेक्ष्य में वह क्यों तर्कसंगत नहीं हैं । अत: वह अपने विचारों को बदल देता है ।

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आदर्शवादी विचारक मानवीय क्रियाओं का अध्ययन समस्त सांस्कृतिक विशेषताओं को एक साथ रखकर करता है । मानव की क्रियाएं उसके द्वारा स्थापित संस्कृति का परिणाम होती है । उसको सभी सांस्कृतिक विशेषताएं जैसे रीति रिवाजों, धर्म आस्था, आदि सभी बातों का उस पर सम्मिलित प्रभाव पड़ता है ।

एक प्रदेश में मानवीय क्रियाओं को सामान्यीकरण के रूप में देखा जाता है, उसमें व्यक्ति विशेष की क्रिया महत्वहीन होती है । जैसे नगरीय भूदृश्य अकथित गतिविधियों की उपज है, लेकिन कहीं-कहीं कुछ लोग पशु पालन साग-सब्जी का उत्पादन जैसे प्राथमिक (कृषित) कार्य में संलग्न मिल सकते हैं, लेकिन हमें ऐसे भूदृश्यों को उनकी प्रधान विशेषता के आधार पर समझना होता है ।

इसी प्रकार किसी क्षेत्र में गन्ने का उत्पादन बहुतायत से किया जाता है, तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वहाँ अन्य फसल का उत्पादन नहीं हो पा रहा है । वह अपने विवरण में इन सब भिन्नताओं को सामान्य रूप में लेने की कोशिश करता है ।

आदर्शवाद पृथ्वी पर सभी प्रकार के सांस्कृतिक सम्बन्ध में मानव क्रियाओं के महत्व को बल देता है । मानव के कार्यकलाप किसी न किसी उद्देश्य से विकसित होते हैं । इनके कारण की खोज करना कि क्यों समय के साथ स्थान विशेष में वह कार्य विकसित हुआ ही, इसका प्रमुख लक्ष्य हैं ।

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उसके विचार स्थान विशेष के सांस्कृतिक दृश्य का निर्माण करते है । इससे प्रादेशिक भूगोल को बढ़ावा मिलता है, मानव का विचारात्मक द्वन्द प्रादेशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न करता है । अत: यह चिन्तन मानव भूगोल व प्रादेशिक भूगोल के अध्ययन में लाभकारी है ।

आदर्शवाद की आलोचना:

1. कभी-कभी इस बात में संदेह व्यक्त किया जाता है कि क्या मानव के विचार सदैव सही है । उसके विचार ऐसी परिस्थितियों से प्रभावित हो सकते है, जिनका उसके मस्तिष्क पटल पर प्रभाव पड़ा हो । मिस सेम्पिल का यह विचार कि मानव मिट्टी का पुतला है ।

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जिन परिस्थितियों में उनके मन में यह विचार आया, उस समय के अनुसार उसके विचार तर्कसंगत थे, लेकिन वर्तमान में नहीं । इसी प्रकार चार्ल्स डारविन का यह कथन कि वह जीवधारी जिन्दा रहता है, जो अपने आपको सही वातावरण के अनुरूप ढाल लेता है ।

उस समय के परिपेक्ष्य में यह कथन सही हो सकता है, लेकिन आज इस कथन की सत्यता संदेह में दिखाई पड़ती है । मानव आज विपरीत परिस्थितियों में रहना सीख गया है । इससे नये-नये विचारों का सृजन हुआ है ।

2. यह चिन्तन भूगोल में विभाजन के पक्ष में है यह उसको भौतिक व मानव भूगोल दो फलकों में बांट देता है । वस्तुत: मानव के विचार उसके प्राकृतिक वातावरण से प्रभावित होते है । प्राकृतिक वातावरण की भिन्नता उसके सांस्कृतिक वातावरण में भिन्नता स्थापित करती है । कहीं वह कृषि करता है, तो कहीं वह कृषि वस्तुओं का व्यापार करता है ।

कही वह बस्तियों का निर्माण करता है, तो कहीं वह उद्योग स्थापित करता है उसकी यह क्रियाएँ स्थानीय प्राकृतिक वातावरण से प्रभावित होती हैं । अत: मानव भूगोल में जहाँ मानव की सोच को प्राथमिकता दी जाती है, वही वह प्राकृतिक वातावरण की अनदेखी नहीं कर सकता ।

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इसी प्रकार भौतिक भूगोलवेत्ता मानव क्रियाओं की अवहेलना नहीं कर सकता । मानव के बढ़ते तकनीकी ज्ञान ने उसकी प्राथमिकताओं में परिवर्तन ला दिया है । इसमें मानव और वातावरण के बीच सम्बन्धों में परिवर्तन हो रहा है ।

आज का मानव दो स्थानों के बीच की दूरी समय में मापता है न की भौतिक स्थिति के रूप में । मानव भूगोल जहाँ प्रकृति की अवहेलना करके कोई अध्ययन नहीं कर सकता है, वहीं भौतिक भूगोल में मानव को भूदृश्य में परिवर्तन लाने वाला अभिकर्ता (Agent) माना जाता है । अत: दोनों ही भूगोल के अंग हैं ।

आदर्शवादी विचारधारा के मूल तथ्य:

प्रादेशिक भूगोल की रचना आदर्शवादी चिन्तन का परिणाम है । प्रदेशों की सीमाओं का निर्धारण समानता के सिद्धान्त पर आधारित होता है । जिसे मानव अपने विचारों से सीमाबद्ध करता है । जैसे सघन जनसंख्या प्रदेश की उपस्थिति इस बात का एहसास कराती है कि वहाँ पर जनसंख्या कम सघन भी है । इस सघन प्रदेश में लोगों का रहन-सहन व्यवसाय, आदि में समानता होती है ।

ऐसे प्रदेश में स्थानीय विभिन्नतायें उसे लघु प्रदेशों में विभक्त कर सकती है । भारत का प्रादेशिक भूगोल पुस्तक में देश को प्रमुख (Macro) प्रदेशों में बाँटने के साथ-साथ उसे मध्यम व लघु (Meso & Micro) प्रदेशों में बांटा गया है । यह लघु प्रदेश मानव ज्ञान एवं विचार के आधार पर कई प्रथम व द्वितीय क्रम के प्रदेशों में बांटे जा सकते हैं । क्योंकि वहाँ संसाधनों की स्थानीय विभिन्नता उनमें अन्तर ला देती है ।

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उदाहरणत: नगर का प्रत्येक भाग समान रूप से विकसित यहीं होता है, वह भी मकानों का स्तर, लोगों की आर्थिक दशा व रहन सहन के आधार पर भिन्नताएँ रखता है । प्रत्येक स्थान की अपनी-अपनी संभाविताए होती है, जो इन भिन्नताओं को जन्म देता है । भूगोलवेत्ताओं ने तर्कसंगत नियमों पर आधारित अनेक मॉडल प्रतिपादित किए है । यह मॉडल उनकी आदर्शवादी विचारधारा का प्रतीक है ।

उदाहरण के तौर पर वाल्टर क्रिस्टालर का केन्द्रीय स्थान सिद्धान्त (Central Place Theory) बस्तियों के आदर्श वितरण का एक मॉडल है, जो बताता है कि प्रत्येक केन्द्रीय स्थान अपने से छ: छोटे केन्द्रीय स्थानों से घिरा होता है । यह छोटे केन्द्रीय स्थान समान अन्तर पर स्थापित होते है तथा षटकोणीय प्रतिरूप का निर्माण करते हैं ।

एक प्रदेश में केन्द्रीय स्थानों में उनके व्यापार क्षेत्र, कार्यों की विशेषता के आधार पर पदानुक्रम पाया जाता है । केन्द्रीय स्थानों के वितरण की यह एक आदर्श विचारधारा है । यह एक परिकल्पना है । इसका प्रयोग वह बस्तियों अथवा केन्द्रीय स्थानों के स्थापन में करते है । वास्तव में, बस्तियों का वितरण कम या अधिक इसी नियम के अनुरूप विकसित मिलता है । इसका अध्ययन उस क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक संरचना को समझने में सहायक होता है ।

बस्तियों के आदर्शवादी वितरण का यह मॉडल क्षेत्र विशेष की मानव क्रियाओं के बारे में जानकारी देता है । जो कभी-कभी उसके आदर्शवादी विचार तर्कसंगत नहीं होते । मानव सामाजिक परिवेश में अपने मस्तिष्क पटल पर जिन विचारों का निर्माण करता है, उसके अनुसार उनका क्रियान्वयन करते हुए सांस्कृतिक भूदृश्य की रचना करता है ।

वह उसकी सकारात्मक सोच का परिणाम होती है । यह चिन्तन सामाजिक विज्ञान की स्वायतत्ता को स्वीकार करता है और मानव एवं प्रादेशिक भूगोल के अध्ययन में उपयोगी सिद्ध होता है । आदर्शवाद मानव ज्ञान व व्यवहार को समझने का प्रयास करता है, जिसके द्वारा उसने सामाजिक व सांस्कृतिक भूदृश्य का निर्माण अपने हित में किया है । जिससे मानव भूगोल ने वर्तमान में नया रूप ग्रहण किया है, और उसने प्राकृतिक भूगोल से अलग अपनी सत्ता स्थापित कर ली है ।

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