List of Hindi Proverbs with Meanings!


Hindi Proverb # 1. कबीरा तू कबसे वैरागी ?

एक बार गुरु रामानंद और उनके अनेक शिष्य किसी खास बात पर चर्चा कर रहे था कि शंकराचार्य शास्त्रार्थ में सबको हराते हुए काशी की ओर बढ़ते आ रहे हैं थे । उन दिनों शोर और अब काशी में उनका किस तरह से सामना किया जा सकता है ?

वहीं पर कबीर भी चुपचाप बैठे थे पर वे एक शब्द भी नहीं बोले । सबकी बातों को कबीर चुपचाप सुनते रहे । रामानंद उठकर जैसे ही गए, सब शिष्य अपना-अपना काम करने में लग गए । कबीर तथा कुछ शिष्य बैठे रहे । इतने में किसी ने सूचना दी कि शंकराचार्य रामानंद को पूछते हुए इधर ही चले आ रहे हैं । कबीर आश्रम के बाहर आकर बैठ गए ।

थोड़ी देर बाद कबीर देखते हैं कि शंकराचार्य डंड-कमंडल लिए अपने शिष्यों के साथ चले आ रहे हैं । शंकराचार्य ने पास आते ही कबीर से रामानंद के बारे में पूछा । कबीर ने उन्हें ठहरने के लिए जगह दी । प्रातःकाल का समय था । कबीर ने शंकराचार्य से कहा, “आप तब तक स्नानादि से निवृत्त हो जाइए । रामानंद कहीं गए हैं । अब आते ही होंगे ।”

शंकराचार्य शौच के लिए तैयार हुए, तो कबीर से पूछा कि शौच के लिए किधर जाना है ? कबीर ने थोड़ी दूर जाकर कहा, ”उधर जगल है, कहीं भी कर लेना ।”  शंकराचार्य अपना कमंडल लिए जंगल की ओर बढ़ गए । थोड़ा फासला रखकर और आख बचाते हुए कबीर भी उनके पीछे-पीछे चल दिए । कबीर ने देखा कि शंकराचार्य एक झाड़ी की आड़ में बैठकर शौच करने लगे ।

कबीर ने थोड़ी दूर खड़े होकर कहा, ”राम, राम ।” इतना सुनते ही शंकराचार्य मुंह दूसरी ओर करके बैठ गए । कबीर फिर घूमकर सामनें पहुंचकर कहने लगे, ”राम, राम ।” शंकराचार्य फिर मुंह फेरकर बैठ गए । कबीर चुपचाप आश्रम लौट आए ।

शंकराचार्य ने शौच के बाद गंगास्नान किया, पूजा-पाठ आदि की, तब निश्चिंत होकर लौटे । शंकराचार्य कबीर से बहुत नाराज थे । आते ही कबीर पर बरस पड़े । कहने लगे, “तुम बिकुल अशिष्ट हो । अज्ञानी हो । तुमको इतना भी ज्ञान नहीं कि शौच करते समय अशुद्धावस्था में होते हैं और उस समय यदि बोलता, तो राम नाम भी अशुद्ध हो जाता ।”

कबीर और शंकराचार्य की आवाजें सुनकर रामानद के अन्य शिष्य भी वहा आ गए । शंकराचार्य की बात सुनकर कबीर बोले, “आप कह रहे हैं कि अशुद्ध पहले ही थे, फिर आप शुद्ध कैसे हुए ?” शंकराचार्य को कबीर की बात बड़ी अटपटी लगी । शंकराचार्य ने कहा, “शुद्ध कैसे हुए ! गंगास्नान करके और कैसे ?”

ADVERTISEMENTS:

कबीर ने फिर कहा, ”आप तो शुद्ध हो गए, लेकिन गंगा का पानी अशुद्ध हो गया । उसमें जो भी स्नान करेंगे, सब अशुद्ध हो जाएंगे ।” शंकराचार्य कबीर को तीव्र बुद्धिवाला समझकर उत्तर देने लगे, ”गंगा का पानी तो वायु के स्पर्श से शुद्ध हो गया ।” इस पर कबीर ने पूछा, ”तब तो वायु दूषित हो गई । अब वायु का क्या होगा ?”

शंकराचार्य ने फिर उत्तर दिया, ”अरे नासमझ, उस वायु को यइा से पवित्र किया ।” कबीर बड़े प्रखर बुद्धि के साधक थे । फिर शंकराचार्य से उन्होंने एक प्रश्न कर दिया, ”तब तो यज्ञ अशुद्ध हो गया । यह तो बहुत बुरा हुआ ।” शंकराचार्य ने कहा, ”बुरा क्या हुआ, यज्ञ को भी मैंने शुद्ध कर दिया ।” कबीर बोले, ”यज्ञ किस चीज से शुद्ध कर दिया ।” शंकराचार्य ने तुरंत उत्तर दिया, ”राम नाम से ।”

इतना सुनते ही कबीर ने कहा, ”यह तो आपने बहुत बुरा किया । आपने राम नाम अशुद्ध कर दिया । हम सब राम का नाम ध्यान करते हैं ।” शंकराचार्य थोड़ा आवेश में आकर बोले, “अरे बच्चे, राम नाम तो कभी अशुद्ध होता ही नहीं । वह तो दूसरों को शुद्ध करता है ।”

इतना सुनते ही कबीर बोल पड़े, ”फिर शौच करते समय राम नाम कैसे अशुद्ध हो जाता ? अभी आप ने कहा कि राम नाम हमेशा शुद्ध रहता है । इससे पहले आप कह रहे थे कि मैं अशुद्धि में था, इसलिए राम नाम नहीं ले सकता था । राम नाम अशुद्ध हो जाएगा ।”

इतना कहकर कबीर ने अपने साथियों से कहा, ”ले लो इनके डंड-कमंडल । जब ये रामानंद के शिष्य से नहीं जीत पाए, तो उनसे मिलकर क्या करेंगे ?” रामानंद के शिष्यों ने शंकराचार्य के डंड-कमंडल ले लिए । जाते समय शंकराचार्य ने पूछा, ”हे रामानंद के श्रेष्ठ शिष्य! क्या अपना नाम बता सकोगे ?” इतना कहना था कि कबीर के एक साथी ने कहा, ”इनका नाम कबीर है ।”

शंकराचार्य ने कबीर को प्रणाम किया और चले गए । इधर कबीर ने अपने साथियों से कहा कि गुरुजी का पता लगाओ कि वे कहां चले गए ? जब उन्हें ढूंढा गया, तो वे उपलों के बिटौरे में छिपे मिले । शिष्य ने आवाज लगाई, ”गुरुजी, बाहर आ जाओ । शंकराचार्य भाग गए ।” यह सुनकर पहले तो रामानंद को विश्वास नहीं हुआ । फिर भी पूछा, “यह कैसे हो गया ?” शिष्य ने उत्तर देते हुए कहा, ”कबीर ने शास्त्रार्थ में हरा दिया और उनके डंड-कमंडल छीन लिए ।”

बिटौरे से निकलकर रामानंद अपने शिष्यों के पास पहुंचे । कबीर के पास आकर रामानद खड़े हो गए और उन्हें ध्यान से देखने लगे । कबीर जैसे ही रामानंद के पैर छूने के लिए झुके, तो रामानंद ने रोक कर पूछा, ‘कबीरा तू कबसे वैरागी ?’ आज से तू मेरा गुरु है ।


Hindi Proverb # 2. शेर का डर नहीं, जितना टपके का

जंगल से करीब एक मील की दूरी पर एक गांव था । रात के समय गांव में प्राय: जंगली जानवर घूम जाते थे और गांव के बाहरी हिस्से में चौपायों को मार जाते थे । कभी-कभी आदमी भी शिकार होते-होते बच जाते थे ।

गांव के बाहरी इलाके में एक बुढ़िया का परिवार रहता था । उसके मकान के पीछे खाली हिस्से में चौपायों का घेर था । बुढ़िया के कमरे के पीछे चौपायों के लिए छप्पर पड़ा था । इस समय घेर में एक भी चौपाया नहीं था ।

ADVERTISEMENTS:

इसीलिए घेर की विशेष देखभाल नहीं की जा रही थी । गांव का कोई भी पशु उसमें आ जाता था और चला जाता था । बरसात के दिन थे । रात के करीब दो बजे थे । आकाश में बादल घिरे हुए थे । बरसात होने वाली थी । रह-रहकर बिजली चमक रही थी । थोड़ी देर में बूंदाबांदी के बाद बरसात शुरू हो गई ।

ज़ोर से बादल गरजा, तो बुढ़िया की नींद टूट गई । बुढ़िया के साथ उसका पोता लेटा हुआ था । बुढ़िया उठी, तो वह भी उठकर बैठ गया । बुढ़िया ने बाहर झाककर देखा तो पानी बरस रहा था । पिछले वर्ष बुढ़िया की छत टपकी थी । इस वर्ष भी वह डर रही थी । अभी बहुत जोर से वर्षा नहीं हुई थी । अपनी दादी को चिंतित देखकर उस लड़के ने कहा, “दादी, इतनी घबराई हुई क्यों हो ?”

बुढ़िया ने कहा, “बेटा, पारसाल छत खूब टपकी थी । सोचा था, बरसात के बाद छत पलटवा लेंगे, नहीं पलटवा पाई ।” वह बोला, ”दादी, टपका से डरती हो ?” दादी बोली, ”अरे बेटा तुम क्या जानो ? मुझे इतना शेर का डर नहीं, जितना टपके का है ।”

पीछे चौपायों के घेर में छप्पर के नीचे शेर बुढ़िया की बातों को सुन रहा था । शेर बुढ़िया के कमरे के ठीक पीछे खड़ा था । कमरे की पटान की कड़ियां दीवार के आर-पार थीं । उन्हीं खाली जगहों से आवाज शेर तक पहुंच रही थी । शेर बुढ़िया की बात सुनकर हैरान था कि टपका ऐसा कोई जीव है, जो मुझसे भी अधिक ताकतवर है । अब तक तो मैं अपने को ही सबसे शक्तिशाली जानवर मानता था ।

ADVERTISEMENTS:

शेर शिकार के लिए इधर आया था । बरसात शुरू हो जाने पर उसे यहा शरण लेनी पड़ी थी । रिमझिम पानी बरसता रहा और शेर छप्पर में खड़ा-खड़ा टपके के बारे में सोचता रहा । उसी गांव के एक धोबी का गधा खो गया था । सुबह पाच बजे उसे कपड़ों की लादी लेकर घाट पर जाना था, इसलिए धोबी सुबह तीन बजे जगकर गधे को खोजने के लिए निकल पड़ा था । हालांकि घुप्प अंधेरा था, लेकिन जब-जब बिजली चमकती थी, रास्ता नजर आ जाता था ।

खोजते-खोजते धोबी बुढ़िया के चौपायों के घेर के सामने खड़ा होकर इधर-उधर देखने लगा । उसने घेर की ओर भी नजर डाली । जैसे ही बिजली कड़क कर चमकी, उसे छप्पर के नीचे खड़ा गधा नजर आया । शेर दीवार की तरफ मुह करके खड़ा था । धोबी गया और शेर को गधा समझकर कान पकड़कर दो हाथ पीठ पर जमाए और कहा, “काम चोर कहीं का । यहां खड़ा है ? तुम्हें कहां-कहां छू आया ।”

शेर ने समझा कि आ गया टपका । जो बुढ़िया बता रही थी, वह यही टपका जान पड़ता है । शेर भीगी बिल्ली की तरह खड़ा रहा । धोबी उछलकर शेर की पीठ पर बैठ गया, आगे गरदन के बाल पकड़े और दो एड पेट पर लगाई और कहा, ‘चलो बेटा ।’

शेर दौड़ने लगा । धोबी ने अपने पैरों के पंजे शेर के आगे वाली कांख में फंसा लिए, जिससे वह गिरे न । धोबी सावधानी से शेर की पीठ पर बैठा जा रहा था । इसी बीच जोर से बिजली कड़की । बिजली की चमक शेर पर पड़ी, तो शेर के बाल और रग देखकर धोबी हैरत में रह गया ।

ADVERTISEMENTS:

उसने सोचा-यह तो गधा नहीं है । कुछ और ही है । अब कुछ-कुछ दिखाई देने लगा था । फिर भी कोई चीज साफ नजर नहीं आ रही थी । उसने देखा कि सामने रास्ते में पेड़ की एक मोटी डाल नीची है । उसे थोड़ा उचककर पकड़ा जा सकता है । जैसे ही शेर पेड़ के नीचे से निकला, धोबी ने उचककर डाल पकड़ी और लटक गया ।

शेर ने जब अनुभव किया कि पीठ पर अब टपका नहीं है, तो वह पूरी ताकत के साथ जंगल की ओर दौड़ा । शेर दौड़ते हुए सोचता जा रहा था, बुढ़िया ठीक कह रही थी कि ‘शेर का डर नहीं, जितना टपके का’


Hindi Proverb # 3. तेते पांव पसारिए, जेती लांबी सौर

अकबर बादशाह बीरबल की तेज बुद्धि और समझदारी से बहुत प्रभावित थे । वे बीरबल को मित्रवत मानते थे और लगभग हर तरह के मामलों में बीरबल से राय लेते रहते थे । दोनों में इतना खुलापन था कि आपस में किए गए व्यंग्यों का बुरा नहीं मानते थे ।

बीरबल कभी-कभी रूठ भी जाते थे, लेकिन अकबर बादशाह होकर भी मना लेते थे । अकबर के साथ बीरबल के इतने गहरे संबंधों को दरबार के विद्वान लोग सहन नहीं कर पा रहे थे । यहां तक कि दरबार के नवरत्नों के विद्वान भी बीरबल के बढ़ते कद को देख नहीं पा रहे थे ।

ADVERTISEMENTS:

वे अकसर अकबर से कहा करते थे कि आप बीरबल को जरूरत से ज्यादा तरजीह देते हैं । जबकि हम लोग भी बुद्धिमानी में बीरबल से कम नहीं हैं । विद्वानों की बातें सुनते-सुनते एक दिन अकबर ने कहा, ”हमारे लिए तो सभी समान हैं । आप लोग भी बीरबल जैसे गुणी बनिए । आपको भी सराहा जाएगा । यदि आप लोगों में कोई बीरबल से अधिक सूझ-बूझ वाला और समझदार है, तो वह बीरबल की जगह ले सकता है ।

आए दिन ऐसे अवसर आते रहते हैं, जब आप अपनी प्रतिभा और समझदारी का परिचय दे सकते हैं ।” अकबर के दिमाग में हमेशा यही बात गूंजती रहती थी कि आप बीरबल को अधिक तरजीह देते हैं, इसलिए एक दिन अकबर ने एक निश्चित तारीख को दरबार में हाजिर रहने के लिए कहा ।

उस निश्चित तारीख को अकबर ने तीन फुट लंबी और दो फुट चौड़ी एक चादर मंगवाई । सिंहासन से अकबर ने उस चादर को दिखाकर कहा, “देखिए, यह एक चादर है । मैं यहा लेट रहा हूं । यह चादर मुझे इस प्रकार ओढ़ाना है कि सिर से पैर तक मेरा पूरा शरीर ढक जाए । अब एक-एक करके आते जाइए ।”

अकबर इतना कहकर वहीं एक तरफ लेट गया । एक-एक करके लोग आते गए और उस चादर को अकबर को ओढ़ा-ओढ़ा कर चलते गए । इस बीच सब लोग समझ गए थे कि अकबर बादशाह सबकी परीक्षा ले रहे हैं ।बादशाह अकबर लगभग सामान्य लंबाई के थे । जब कोई चादर को सिर पर खींचकर लाता था तो पैर करीब घुटनों तक उखड़ जाते थे ।

जब पैर को ढकने के लिए चादर खींचते तो सिर सीने तक उखड़ जाता था । इसी प्रकार दरबार के लोग आजमाइश कर-करके अपने स्थान पर बैठते रहे । कुछ देर तक कोई नहीं आया, तो अकबर ने उठकर पूछा कि कोई चादर ओढ़ाने के लिए रह तो नहीं गया, लेकिन कहीं से भी हाथ उठता दिखाई नहीं दिया ।

फिर बादशाह ने कहा, ”अब बीरबल को भी आजमाइश के लिए बुलाते हैं । देखते हैं कि वे क्या करते हैं ?” अकबर ने बीरबल को चादर ओढ़ाने के लिए कहा और लेट गए । बीरबल ने पहुंचकर चादर उठाकर गौर से देखी । इसी बीच बीरबल ने इसका हल सोच लिया ।

अकबर बादशाह की ओर मुखातिब होकर बीरबल ने बेझिझक कहा, ”उतने पैर पसारिए, जितनी लंबी सौर ।” अर्थात चादर के अनुसार अकबर बादशाह से पैर सिकोड़ने के लिए कहा । पूरा दरबार बीरबल की बात सुनकर दंग रह गया । विद्वान लोग समझ तो गए, लेकिन अब होता क्या है, यह देखने के लिए सबकी निगाहें वहीं गड़ी थीं ।

अकबर बादशाह बीरबल की बात समझ गए और मन-ही-मन मुस्कराकर अपने पैर इतने सिकोड़ लिए कि शरीर चादर से बाहर न रहे । बीरबल ने चादर फैलाई और अकबर को ओढ़ा दी । सब देखकर दंग रह गए । अकबर का शरीर, सिर से पैर तक पूरा ढका था । बीरबल अपनी जगह आकर बैठ गए थे ।

अकबर भी उठकर अपनी जगह बैठ गए थे । बीरबल अपनी आजमाइश में सफल हो गए थे । इस पर अकबर बादशाह ने दरबार को संबोधित करते हुए कहा, ”देखा आप लोगों ने बीरबल की समझदारी को । बिना किसी संकोच के कहा कि चादर के अनुसार अपने पैर सिकोड़ लीजिए ।

मुझे पैर सिकोड़ने पड़े । और उसी चादर से मेरा पूरा शरीर ढक गया । शायद कुछ लोगों के समझ में न आया हो, जो बीरबल ने कहा था : ‘तेते पांव पसारिए, जेती लांबी सौर। दरबार में बैठे सभी लोगों के मुह लटक गए । इसके बावजूद कुछ लोग मन-ही-मन बीरबल से ईर्ष्या करते रहे ।


Hindi Proverb # 4. अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियां चुग गई खेत

एक किसान परिवार था । थोड़ी खेती थी । किसानिन बहुत मेहनतिन थी । किसान बहुत आलसी था । जैसे-तैसे किसानिन ने कह-सुनकर किसान से खेत जुतवा लिए थे ।

जब खेत में फसल के अंकुर फूटे और खेत में से छांट-छांटकर घास काटने का समय आया, तो किसान नदारद रहने लगा । वह गांव के कुछ निकम्मे लोगों की सोहबत में पड़ गया । किसानिन ने पूरे-पूरे दिन लगकर खेतों की घास को काटकर निराई की ।

घर में किसान की बूढ़ी मां थी, जो केवल घर में झाडू लगा लेती थी और इधर-उधर पड़ी हुई चीजों को सही जगह रख देती थी । किसानिन ही सुबह-शाम खानी बनाती थी । बर्तन माँजना, कपड़े धोना और पानी भरना अकेली किसानिन को ही करना पड़ता था ।

थोड़ा-बहुत कहने-सुनने पर कभी-कभी किसान थोड़ा पानी भरवा देता था । जब खेत के पौधे बड़े होने लगे, तो खेत में चार बल्लियां गाड़कर एक मचान बना दिया । उस पर किसान बैठा-बैठा खेतों को देखता रहता और उसी पर लेटा रहता । किसानिन भी समय-समय पर देखभाल करती रहती ।

कुछ दिन बाद खेत में बालियां आने लगीं । बालियों में दाने बनने लगे और देखते-देखते बालियों के दाने पकने लगे । शुरू के दिनों में किसानिन ने बहुत मेहनत की थी । अब किसान की बारी थी । किसानिन ने खेत के मचान पर एक कनस्तर टाग दिया था ।

उसे बजाने के लिए एक डडा भी वहा रख दिया था । किसान खेत की रखवाली के लिए घर से जाते समय पहले रामू की चौपाल पर ताश खेलने बैठ जाता था । एक-दो घंटे बैठने के बाद वह खेतों पर जाता और मचान पर जाकर लेट जाता । लेटते ही नींद आ जाती ।

जब आख खुलती, तो थोड़ा कनस्तर बजाता जिससे खेत में बैठी हुई चिड़िया उड़ जातीं । जैसे ही खेत पकने की स्थिति में आया, वैसे-वैसे वह चौपाल में ताश खेलने में अधिक समय लगाने लगा । उसके खेत पर चारों तरफ की उड़ाई हुईं चिड़िया आकर बैठने लगीं और दानों को चुन-चुनकर खाने लगीं ।

इस बीच किसानिन गर्भावस्था की उस स्थिति में पहुच गई थी कि खेतों पर जाना, ऊंची-नीची जगहों पर चलना, सब कुछ बंद हो गया था । अब फसल की रखवाली पूरी तरह से किसान के ऊपर आ पड़ी थी । उधर चिड़िया फसल के दानों को जमकर चुगती रहतीं । दिन चढ़े उठता, तो खेतों की ओर घूमता हुआ चला आता । जब फसल कटने का समय आया, तो किसानिन के कहने पर गांव के दो आदमियों को लेकर किसान फसल काटने पहुंचा ।

साथ में गए आदमियों ने फसल देखी और सोच में पड़ गए । उसमें से एक ने कहा, “भैया, इन बालियों में दाना एक भी नहीं है । इस फसल में कुछ नहीं निकलने  वाला । तुमको हमारी मजदूरी और देनी पड़ेगी । नहीं तो बाद में कहोगे कि मैं कहाँ से दूं । इसमें तो कुछ निकलेगा ही नहीं ।”

“दाय चलाने के बाद भूसा ही मिलेगा । घर में पूछ लेना । सोच-विचार कर लेना । हम चलते हैं ।” इतना कहकर दोनों आदमी चले आए । उस किसान का चेहरा फक्क-सा रह गया । सूखा-सूखा-सा मुंह लटकाए घर की ओर चल दिया । वह रोता-सा मुंह बनाए किसानिन के पास जा पहुचा । वहा पहुचकर उसने रोना शुरू कर दिया ।

किसानिन साहसी औरत थी । जो उससे मजदूर आदमियों ने कहा था, उसने अपनी पत्नी को सब कुछ बता दिया था और किसान रो-रोकर अपनी गलतियों की क्षमा मागता रहा, पछताता रहा । किसानिन बहुत गंभीर होकर अपने पति के औसू पोंछते हुए बोली:

‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियां चुग गईं खेत ।’


Hindi Proverb # 5. बीरबल की खिचड़ी

पौष के महीने में शाम के समय कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी । पक्षियों के झुंड-के-झुंड अपने-अपने बसेरों की ओर उड़ते जा रहे थे । अकबर बादशाह छत पर खड़े-खड़े यह सब देख रहे थे । आज उनके साथ बीरबल भी मौजूद थे । यमुना की लहरों को छूते हुए हवाओं के ठंडे झोंके आते और दोनों को ठैडा करते हुए निकल जाते ।

दोनों ही नगर की जनता के हालात के बारे में चर्चा कर रहे थे । दिन डूबते ही लोग गलियों और सड़कों पर दिखाई नहीं देते थे । पाला पड़ रहा था । नगर की जनता और पशु-पक्षियों का बुरा हाल था । अरहर और मटर की फसलों पर पाला पड़ गया था ।

इन गंभीर बातों के बाद वे साधारण बातों पर उतर आए । यमुना नदी की ओर देखते हुए अकबर बोले, ”बीरबल, ऐसा भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति गले तक डूबा हुआ पूरी रात यमुना के पानी में खड़ा रहे ।” बीरबल हाजिर जवाब तो थे ही । उन्होंने तुरत कहा, ”क्यों नहीं ? तमाम ऐसे लोग मिल जाएंगे ।”

बीरबल की बात सुनकर अकबर आश्चर्यचकित रह गए । अकबर ने कहा, ”तो ठीक है । कल एक ऐसा व्यक्ति तलाश कर लाओ ।” पूरे दिन बीरबल यमुना नदी के आस-पास के धीवरों से मिलते रहे । आखिर में बीरबल ने एक ऐसा व्यक्ति तलाश लिया । शाम होते ही बीरबल उस व्यक्ति को लेकर अकबर के पास पहुंचे ।

अकबर के सामने ही वह व्यक्ति गरदन तक यमुना के पानी में उतर गया । कुछ देर अकबर देखते रहे । उसके बाद अकबर ने कई कारिंदे तैनात कर दिए कि इस आदमी की देखभाल करते रहें । सुबह होते ही बादशाह छत पर आए । देखा तो वह आदमी उसी तरह पानी में खड़ा हुआ था । अकबर ने कारिंदा से कहा कि अब इसे बाहर आने को कहो और दरबार में लेकर आओ ।

कारिंदा उस धीवर को लेकर अकबर के दरबार में पहुंचा । अकबर ने उस धीवर से पूछा कि पूरी रात तुम पानी में कैसे खड़े रहे ? अकबर की बात सुनकर धीवर ने कहा, ‘जहांपनाह, मैं तो रात भर ईश्वर का नाम लेता रहा । कभी-कभी यमुना के उस पार जलते हुए दीपक को देखता रहा । इससे मन लगा रहा ।’

इतनी बात सुनते ही अकबर बोल पड़े, ”अच्छा तो पूरी रात पानी में खड़े रहने का यह राज है । दीये की लौ से गर्मी लेते रहे और मैं यही सोचता रहा कि इतनी तेज सर्दी में कोई पूरी रात कैसे खड़ा रह सकता है ?”

अकबर की बात सुनकर बीरबल को अजीब-सा लगा । बीरबल कुछ कहना चाह रहे थे, लेकिन बोले नहीं । अपमान का धूट पीकर रह गए । धीवर बेचारा सोच रहा था कि इनाम मिलेगा, लेकिन उसे झिड़की सुनने को मिली ।

शाम को बीरबल धीवर के पास गए । उसे कुछ रुपए अपने पास से दिए और कहा कि चिंता मत करना । तुम्हें इनाम अवश्य मिलेगा । बीरबल रात भर धीवर की समस्या को लेकर उधेड़-चुन में लगे रहे । इस घटना से बीरबल का भी अपमान हुआ था और उसके प्रति तो बिकुल नाइंसाफी हुई थी ।

नींद के आते-आते बीरबल के दिमाग में इस समस्या का तरीका आ गया था । दूसरे दिन जब बीरबल समय से दरबार में नहीं पहुंचे, तो बादशाह ने हरकारा भेजा और बीरबल को आने के लिए कहलवा भेजा । जब बीरबल के पास हरकारा पहुंचा, तब वे खिचड़ी पका रहे थे ।

बीरबल ने हरकारे से कहा कि बादशाह से कहना कि बीरबल खिचड़ी बना रहे हैं । एक घंटे में पहुंचते हैं । हरकारे ने जाकर बीरबल की कही बात को बादशाह से कह दिया । दो घंटे बीत गए, लेकिन बीरबल दरबार नहीं पहुंचे । अकबर ने फिर हरकारा भेजा ।

हरकारा जब बीरबल के पास पहुंचा, तो बीरबल ने हरकारे से कहा कि बादशाह से कहना कि खिचड़ी अभी पकी नहीं है । एक घंटे बाद आ रहे हैं । दो घंटे और बीत गए, तो तीसरी बार अकबर ने फिर हरकारा भेजा । तीसरी बार भी हरकारा, वही उत्तर लेकर लौटा कि खिचड़ी पकने में अभी एक घंटा और लगेगा ।

दरबार का समय खत्म होने को आया, लेकिन बीरबल दरबार में नहीं पहुंचे । दरबार खत्म करने के बाद अकबर बादशाह सीधे बीरबल के पास पहुंचे । उन्होंने देखा कि बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं । बीरबल ने एक लंबा बांस जमीन में गाड़ रखा था और उसके ऊपर, चोटी पर एक हाड़ी लटका रखी थी । बीरबल ने बांस के नीचे जमीन पर चूल्हा जला रखा था ।

यह देखकर अकबर बादशाह आश्चर्यचकित, रह गए । बीरबल बैठे चूल्हा जला रहे थे । कब बीरबल के पास आकर अकबर खड़े हो गए, बीरबल को मालूम नहीं पड़ा । जब अकबर ने आवाज दी, तो बीरबल ने देखा और खड़े हो गए । बीरबल बोले, ”जहांपनाह आप! आपने क्यों कष्ट किया ? खिचड़ी पकाने में लगा हुआ हैं ।

पक ही नहीं रही है । मैं सुबह से बैठा-बैठा पका रहा हूं ।” अकबर मुस्कराते हुए बोले, ”तुम्हारी खिचड़ी कभी नहीं पक पाएगी । 15 फुट ऊंचाई पर हाड़ी लटका रखी है । नीचे आग जला रखी है । क्या इस आग की गरमाहट उस हाड़ी तक पहुंच रही होगी ?”

बीरबल ने कहा, ”क्यों नहीं जहांपनाह, इसकी गर्मी हाड़ी तक अवश्य पहुंच रही है । आप ही सोचिए उस धीवर को यमुना पार जलते दीये से गर्मी मिलती रही और उसी की गरमाहट से वह पूरी रात पानी में खड़ा रहा ।”

अकबर ने बीरबल को गले लगा लिया और कहा, ”उस धीवर को कल दरबार में हाजिर होने के लिए बुलावा भेज देना । आप भी समय पर आ जाना । यहीं खिचड़ी मत पकाते रहना ।” इतना कहकर अकबर बादशाह चले गए ।

दरबार लगा हुआ था । बीरबल धीवर को लेकर समय पर पहुंच गए । अकबर बादशाह ने अपनी भूल को सुधारते हुए धीवर को सम्मानित किया और सम्मान के साथ ही अच्छा इनाम भी दिया । दरबारियों ने आपस में कानाफूसी करते हुए आपस में कहा : ”यह सब ‘बीरबल की खिचड़ीका कमाल है ।”


Hindi Proverb # 6. मन चंगा, तो कठौती में गंगा

रैदास जूते गांठकर अपनी जीविका कमाते थे । सड़क पर जगह बना ली थी, जहां पर बैठकर रोजाना जूते गौठा करते थे । काशी जाने वाले लोग इसी सड़क से होकर जाया करते थे । साधु, संत आदि जो भी लोग गर्गास्नान के लिए जाते थे, इधर से होकर ही निकलते थे ।

और उनके जूते गांठकर सेवा करने का अवसर मिलता था । एक दिन की बात है । उस दिन कोई पर्व था । उनके एक साथी पंडित गंगास्नान को जा रहे थे । उन्होंने सोचा, चलो रैदास से मिलते चलते हैं और जूता भी गंठवा लेंगे ।

रैदास के पास पहुंचे, तो जूता गंठवाने के लिए उतार दिया और रैदास से बोले, ”गंगास्नान के लिए नहीं चलोगे ?” रैदास काम करते जा रहे थे और पंडित से बातें करते जा रहे थे, ”पंडित जी, हम गरीबों को बच्चों के पेट पालने से फुरसत नहीं । गंगास्नान कहां से करें ? हम लोग तो रोजी-रोटी में ही फंसे रहते हैं महाराज ।”

तब तक रैदास ने जूते की सिलाई करके पंडित के आगे रख दिया । पंडितजी जेब से निकालकर पैसे देने लगे, तो रैदास बोला, ”आप से मजूरी के पैसे नहीं लूगा । आप मेरा एक छोटा-सा काम कर देना ।”

पंडित ने पूछा, ”क्या काम है ?”

रैदास ने पांच सुपारी देते हुए कहा, ”ये सुपारी मेरी ओर से गंगा मैया को भेंट कर देना, लेकिन गंगा मैया जब हाथ बढ़ाकर लें, तभी देना ।” पंडित ने रैदास की सुपारियां लीं और चल दिए, लेकिन पंडित रैदास की बात पर रास्ते भर हंसता रहा, तरह-तरह की बातें सोचता रहा । गगा घाट पर जाकर पंडित ने स्नान-ध्यान किया ।

जैसे ही वे वापस चले, तो रैदास की सुपारियों की याद आ गई । सुपारियां गंगा में फेंकने ही वाले थे कि उसी समय रैदास की गंगा द्वारा हाथ बढ़ाकर लेने की बात याद आ गई । रैदास का तेवर पंडित को अब भी याद था । पंडित को उसकी बात पर बिकुल विश्वास नहीं था, फिर भी रैदास की असलियत जानने के लिए रुक गया ।

पंडित ने हाथ में सुपारियां लीं और गगा मैया से बोला, ‘लो, रैदास ने आपके लिए ये सुपारियां भेजी हैं ।’  पंडित इतना कहकर चुप हो गए और हाथ निकलने का इतजार करने लगे । उसी समय जल में से एक कोमल हाथ निकला और सुपारियां लेकर जल में चला गया ।

उसी क्षण दूसरा हाथ निकला । उस हाथ में रत्नों से जड़ा हुआ सोने का सुदर कगन था । साथ ही उसे आवाज सुनाई दी कि यह कंगन प्रसाद के रूप में रैदास को दे देना । रैदास से कहना कि गगा मैया ने तुम्हारी भेंट स्वीकार कर ली है ।

इस घटना से पंडित आश्चर्यचकित रह गया । फिर भी पंडित मन-ही-मन रैदास से ईर्ष्या करने लगा । जब पंडित उसी रास्ते से निकला, तो रैदास की नजर बचाते हुए सीधा घर निकल गया । सोने के कगन ने पंडित के मन में लोभ पैदा कर दिया था ।

घर पहुंचते ही पंडित ने आवाज लगाई, ”सुनती हो, देखो मैं क्या लाया हूं ?” कंगन को देखकर पंडिताइन की खुशी का ठिकाना न रहा । पंडित कंगन से संबंधित पूरी घटना सुनाते रहे और पंडिताइन सोचती रही कि अब घर की दरिद्रता दूर हो जाएगी ।

यह कगन रत्नों से जड़ा हुआ सोने का है । इसकी कीमत का अंदाजा लगाना मुश्किल है । पंडिताइन ने पंडित को सुझाव देते हुए कहा, ”इसे बेचने में बड़ी दिक्कत आएगी ? सुनार सोचेगा कि यह रत्नों से जड़ा हुआ सोने का कगन पंडित के पास कहां से आया ? इससे अच्छा है आप इसे काशी नरेश को भेंट कर दो ।

काशी नरेश इतना इनाम देगा कि हमें भीख मांगने से छुटकारा मिल जाएगा । फिर चैन से रहेंगे ।” दूसरे दिन पंडित काशी नरेश के दरबार में पहुचा । पंडित ने नरेश को जब वह कंगन भेंट किया, तो बहुत प्रसन्न हुए । काशी नरेश ने पंडित को पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपए दिए ।

पंडित रुपए लेकर अपने घर चला गया । प्रसन्न होकर रानी ने कगन को पहन  लिया । जिसने भी उस कंगन को देखा, सभी ने बहुत सुंदर बताया । सुँदर बताने वालों ने यह भी कहा, ”आपका दूसरा हाथ सूना-सूना लगता है ।”

जब महारानी ने काशी नरेश से अपने एक हाथ के सूनेपन की बात कही, तो उन्होंने तुरंत पंडित को बुलवाया । उससे उस कंगन के जोड़े का दूसरा कंगन लाने के लिए कहा गया । काशी नरेश ने यह भी खबर भिजवाई कि यदि उसने कंगन लाकर नहीं दिया, तो घर जप्त कराकर देश निकाला दे दिया जाएगा ।

पंडित घबराता हुआ राजा के पास पहुँचा । उसने कंगन प्राप्त करने की पूरी कहानी सुना दी । काशी नरेश ने कहा, ‘रैदास से जाकर कहो कि गंगाजी से इसके जोड़ का दूसरा कंगन लेकर आए ।’ पंडित रोता हुआ रैदास के पास पहुंचा । उसने एक लाख रुपए सामने रखकर पूरी घटना सुनाई और बोला, ‘रैदासजी, मुझे माफ कर दो ।

मेरी जान बचा लो । गंगाजी से उसके जोड़ का दूसरा कंगन लाकर दे दो । एक लाख रुपए ये ले लो । एक लाख रुपए उस कगन के भी मिलेंगे ।’ रैदास ने विनम्र भाव से कहा, ‘महाराज, मेरी जीविका तो जूते गांठने में निकल आती है । हमारी सब जरूरतें इसी काम से पूरी हो जाती हैं ।

इन्हें तो आप ही रखिए, और गर्गा जाने को मेरे पास समय नहीं है, फिर भी मेरी इच्छा है कि आपका काम हो जाए ।’ पंडित गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘आप जैसा चाहें, वैसा करें । मुझे राजा के कोप से बचा लीजिए । मेरा घर-बार छीनकर देश निकाला दे देगा ।’

रैदास पंडित की स्थिति को समझ गए । रैदास ने सामने रखी चाम को भिगोनेवाली कठौती को अंगोछा फैलाकर ढक दिया और बोले, ‘जो मन चंगा, तो कठौती में गंगा ।’  अंगोछा हटाते ही उसमें पहले की ही तरह का रत्नों से जड़ा हुआ सोने का कगन दिखाई दिया ।

रैदास ने कंगन निकालकर पंडित को दे दिया । पंडित तेज कदमों से चलते हुए सोचता जा रहा था कि किस प्रकार एक जूते गांठने वाले चमार ने दो लाख रुपए ठुकरा दिए थे । मोह-माया से रहित दयावान रैदास उसके अंदर तक उतर गया । उसे बार-बार एक बात याद आ रही थी : ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’


Hindi Proverb # 7. एक से बढ़कर एक |

एक था सुनार और एक था अहीर । दोनों के चोरों और ठगों से संबंध थे । चोरी और लूट का सामान खरीदने ओर बिकवाने में इन दोनों का हाथ रहता था । कुछ दिनों बाद इन दोनों में मित्रता हो गई थी । कभी-कभार एक-दूसरे के यहा आते-जाते, तो मेहमानों जैसी खातिरदारी होती ।

चोरों का माल न आने से दोनों का काम ठप्प-सा हो गया था । फिर भी सुनार की दाल-रोटी का जुगाड़ होता रहता था । एक दिन अहीर सुनार के नगर में आया । नगर में आया तो सुनार के घर भी  गया । सुनार ने अहीर का आदर-सत्कार किया और शाम को सोने की थाली में भोजन कराया ।

अहीर खाना खाते समय स्वाद तो भूल गया, चमचमाती थाली को देखता रहा । अहीर की नजरें थाली पर गड़ी थीं और सुनार की नजरें अहीर के चेहरे पर । सुनार ने सोचा कि अहीर है तो मित्र, फिर भी कहा जाता है कि चोर चोरी से जाए, हेरा-फेरी से न जाए, अहीर से बचके तो रहना ही पड़ेगा ।

सुनार ने उसे रात को सामने वाले कमरे में लिटा दिया । अहीर थाली को हथियाने के तरीके सोचते-सोचते सो गया । सुनार ने सोते समय अपनी चारपाई पर छींका टांगा और उसमें थाली रख दी । उस थाली में एक लोटे की सहायता से ऊपर तक पानी भर दिया । उसके नीचे सुनार सो गया ।

अहीर की रात को आख खुली, तो उस थाली को तलाशने की सोचने लगा । उसकी नजर सीधी सुनार के ऊपर छींके पर रखी थाली पर पड़ी । वह आया और बड़ी सावधानी से थाली को हलके से छुआ और उचककर देखा थाली पानी से लबालब है । थोड़ा-सा धक्का लगने से थाली का पानी छलककर सुनार के सीने पर गिरेगा ।

अहीर के दिमाग में तुरंत एक बात आई । उसने चूल्हे की राख एक दूसरी थाली में भर ली । सुनार के कमरे में पहुचकर वह छींके पर रखी थाली में राख डालता गया । राख थाली का सारा पानी सोख गई । उसने सावधानी से थाली उतारी और घर के बाहर निकल गया । थोड़ी दूर ही सामने एक गड़ा था । अहीर ने थाली उसी गहुए में गाड़ी और आकर सो गया ।

सुनार की आख खुली, तो उसने ऊपर देखा-थाली गायब थी । वह उठा और दबे पाव अहीर की चारपाई के पास गया । उसने देखा कि अहीर के पैर गीले हैं । वह समझ गया कि अहीर थाली को सामने वाले गहुए में गाड़ आया है । सुनार गया और उसने गहुए की तली में टटोलना शुरू कर दिया । थाली मिल गई ।

सुबह होते ही अहीर तैयार होकर घर जाने लगा । सुनार ने उससे एक दिन और रुकने के लिए कहा । अहीर रुक गया । अहीर को फिर उसी तरह की चमचमाती थाली में खाना दिया गया । अहीर ने उस थाली को ध्यान से देखा और पहचान गया ।

थाली के किनारे पर एक जगह निशान था । अहीर समझ गया कि सुनार वहां से थाली निकाल लाया है । सुनार भी उसकी नजरों से समझ गया कि इसने थाली पहचान ली है । खाना खाते समय अहीर बोला, ‘मैं अपने को बहुत तीरंदाज मानता था, लेकिन तुम मेरे से भी चार कदम आगे निकले ।’

फिर काम-धंधे की बातें चलती रहीं । दोनों इस बात पर तैयार हो गए कि पैसे कमाने के लिए कहीं बाहर चलते हैं । दूसरे दिन दोनों चल दिए । दोनों एक शहर में पहुंचकर घूमते रहे । घूमते-घूमते शहर के दूसरे छोर पर पहुंचे । वहां उन्हें सामने एक शवयात्रा आती नजर आई । दोनों पुण्य का काम समझकर उस शवयात्रा में शामिल हो गए ।

उन्हें पता चला कि यह शवयात्रा तो शहर के बहुत बड़े सेठ की है । दोनों इस शव से कुछ कमाने की सोचने लगे । सुनार बोला, ”एक काम करते हैं ।” अहीर बोला, ‘क्या ?’ सुनार ने कहा, ‘थोड़ी देर में शव जलाने के बाद सेठ के लड़के घर जाएंगे ।

तुम इनके साथ जाकर घर देख लेना और फिर एक घंटे बाद जाकर सेठ के लडुकों से कहना कि सेठ को मैंने दस हजार रुपए रखने के लिए दिए थे । लेने आए हैं और वे मना करें, तो कहना कि मरघट पर चलकर सेठ जी से पूछ लो । यदि सेठजी हा में आवाज देते हैं, तो दे देना ।

इतना कहकर यहीं आ जाना । मैं तब तक एक सुरंग खोदना शुरू करता हूं ।’ अहीर उनके साथ चला गया और एक घंटे बाद उनके लडुकों से उसी प्रकार बताकर दस हजार रुपए मांगे । उन्होंने खाते देखे । खाते में होते, तो मिलते । अहीर ने कहा,  ”कल आप फूल चुनने जाएंगे । वहीं सेठजी से पूछ लेना और उनकी आत्मा यदि कहती है, तो दे देना ।

ADVERTISEMENTS:

नहीं तो मैं समझूंगा कि मेरे भाग्य में नहीं है । मैं सुबह आ जाऊंगा ।” इतना कहकर वह चला आया और दोनों ने मिलकर रात में सुरंग खोद ली । फिर सुबह जाकर अहीर उनके साथ आ गया । सेठ के लड़के तथा अहीर उसी जगह खड़े हो गए जहां सेठ का शव जलाया गया था ।

पहले उन्होंने सेठजी की जली हड्डियां इकट्ठी कर लीं । इसके बाद अहीर ने ऊंची आवाज में कहा, ”सेठजी, मेरे दिए हुए दस हजार रुपए आपके खातों में नहीं मिले । यदि आपको याद हो, तो हां कह दो और याद न हो तो मना कर दो ।” सुरंग से सुनार की आवाज आई, ‘यह दस हजार रुपए मेरे पास जमा कर गया था ।

इसके पैसे देने पर ही मेरी मुक्ति हो पाएगी, नहीं तो मैं नरक में पड़ा रहुंगा ।’  घर जाकर सेठ के लडुकों ने अहीर को दस हजार रुपए दे दिए । अहीर रुपयों की पोटली लेकर सीधा अपने घर चल दिया । सुनार भी जानता था कि वह सीधा घर जाएगा, इसलिए उसके जाते ही वह सुलगा से निकल आया और अहीर के घर को चल दिया ।

जब सुनार बाजार से निकल रहा था, तो उसने एक जोड़ी जूते बढ़िया वाले खरीदे और लेकर चल दिया । अब अहीर का घर करीब दो मील रह गया था । उसने वहीं रास्ते पर उसके आने की प्रतीक्षा की । दूर पर उसे अहीर आता दिखाई दिया ।

उसने एक जूता वहीं डाल दिया और आगे बढ़ गया । एक जूता उसने एक फर्लांग की दूरी पर डाल दिया । जूते डालकर वह एक पेड़ की आड़ में खड़ा हो गया । जब अहीर पहले जूते के पास से निकला, तो उसका मन ललचाया, लेकिन एक जूता होने के कारण वह आगे बढ़ गया ।

आगे जाकर उसे उसी जूते के साथ का दूसरा जूता दिखाई दिया । उसका मन  ललचाया । उसने इधर-उधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया । उसने पोटली वहीं रखी और तेज कदमों से पीछे वाला जूता लेने के लिए लौट गया । इधर सुनार ने रुपयों की पोटली सिर पर रखी और खेतों में छिपता-छिपाता गायब हो गया ।

जब अहीर जूता लेकर वापस आया तो उसने देखा कि पोटली गायब है । उसने जूते वहीं फेंके और सुनार के घर को चल दिया । सुनार ने घर आते ही अपनी पत्नी से कहा कि अहीर आता ही होगा । उससे कहना कि मैं अभी आया नहीं हू । इतना समझाकर वह एक सूखे, गहरे व अंधेरे कुएं में छिप गया ।

करीब एक घंटे बाद अहीर सुनार के घर आया । अहीर ने सुनार के आने के बारे में पूछा, तो उसकी पत्नी ने कहा, ”वे तो तुम्हारे साथ ही गए थे । यहा तो आए नहीं । आप उन्हें कहां छोड़ आए हैं ?” अहीर समझ तो गया कि यह औरत भी खूब झूठ बोल रही है ।

उसने भी वहीं रुककर सुनार का पता लगाने की ठान ली । सुनारिन अब रोज अहीर को सुबह खाना खिलाती । फिर पानी भरने जाने के बहाने सुनार को कुएं में खाना पहुंचाती और दूसरे कुएं से पानी भरकर लाती । एक दिन डोलची में कुछ रखते हुए अहीर ने देख लिया और उसे शक हो गया ।

ADVERTISEMENTS:

सुनारिन जैसे ही पानी भरने घर से निकली, तो अहीर भी उसके पीछे-पीछे चला गया । उसने देखा कि सुनारिन ने डोलची कुएं में फांसकर आवाज लगाई, ”रोटियां ले लो ।” अहीर समझ गया कि सुनार इसी कुएं में छिपा है । अहीर वापस चला आया ।

दूसरे दिन अहीर अपने कपड़ों के ऊपर सुनारिन के ही कपड़े पहनकर कुएं पर पहुंचा । डोलची में रोटियां रखकर कुएं में फांसी और सुनारिन की आवाज में कहा,  ”रोटियां ले लो ।”  फिर बोला, ”अहीर ने तो घर में डेरा डाल रखा है । टलने का नाम ही नहीं लेता । मेरे पास पैसे खत्म हो गए हैं ।

कुछ पैसे दे दो ।” सुनार ने कुए में से कहा, ”यहा मेरे पास क्या पैसे रखे हैं ? पानी की घिनौची के नीचे रुपयों की पोटली गड़ी है । उसी में से निकाल लेना ।” इतना सुनते ही अहीर ने डोलची खींच ली । उसने लहंगा-फरिहा उतारकर डोलची में रखी और डोलची एक खेत में फेंककर तेजी से चल दिया ।

जैसे ही सुनारिन सुनार को खाना देने निकली, वह घर में घुस गया और घिनौची से रुपए निकालकर ले गया । उधर सुनारिन ने डोलची फांसकर आवाज लगाई, ”रोटियां ले लो ।” तो सुनार ने कहा कि तू अभी तो रोटियां देकर गई है । तुरत उसी क्षण उसके दिमाग में आया और बोला, ‘जल्दी निकाल कुएं से ।

अहीर सब रुपए लेकर चला गया होगा ।’ दोनों घर पहुंचे, तो देखा कि पानी की घिनौची खुदी पड़ी है । उसमें एक रुपया भी नहीं निकला । सुनार बड़ा दुखी और उदास होकर बोला, ‘मैं अपने को ही सबसे अधिक होशियार समझता था, लेकिन दुनिया में ‘एक से बढ़कर एक’ पड़े हैं ।’

Home››Proverbs››