List of popular Hindi Proverb Sayings!
Hindi Proverb Saying # 1. तिरिया से राज छिपे न छिपाए:
एक पति-पली का आपस में बहुत प्रेम था । दोनों एक-दूसरे पर पूरा विश्वास करते थे । यहां तक कि पति ने अपनी पत्नी के प्रेम के आगे पूरे परिवार को दरकिनार कर दिया था । पत्नी के लिए वह घर के सब लोगों से लड़ लेता था ।
वह जानता था कि उसके माता-पिता कितने सीधे और सच्चे हैं, लेकिन जब कोई मौका आता, तो पत्नी का ही पक्ष लेता था । भाई से अच्छे संबंध होने के बाद भी वह कोई विशेष बात उसे नहीं बताता था । अपनी पत्नी को सब-कुछ बता देता था ।
एक दिन वह घूमता हुआ गांव के एक अनुभवी व्यक्ति काका के पास गया । काका बहुत अनुभवी व्यक्ति थे और उसके पिता के पक्के दोस्त थे । दोस्त तो अब भी थे, लेकिन पहले जैसा घूमना-फिरना, उठना-बैठना नहीं हो पाता था ।
काका को अपनी राजी-खुशी बताते समय अपनी पत्नी के बारे में अधिक बोलता था । उसकी प्रशंसा करता रहा था । उसने यह भी बताया कि जो भी राज की बात होती है, पत्नी से छिपाता नहीं है । विश्वास के मामले में उसने पूरे परिवार को शक की नजर से देखना शुरू कर दिया था ।
जब वह सब-कुछ बताकर थक गया, तब काका ने कहा, ”जो तुम सोच रहे हो, वह सही नहीं है । अपनी पत्नी के बारे में तुमको जरूरत से ज्यादा विश्वास है । किसी समय परीक्षा लेकर देखो, फिर पता चलेगा कि कौन कितनी राज की बात छिपा सकता है ? मैं यह नहीं कह रहा कि तुम्हारी पत्नी का प्रेम सच्चा नहीं है ।
कभी-कभी सच्चा प्रेम करने वाला नासमझी में अपने प्रिय का हित करने के चक्कर में अहित कर बैठता है ।” सारी बात सुनकर वह अधीर हो उठा । उसने जल्दी-से-जल्दी पत्नी की परीक्षा लेनी चाही । उसने काका से कुछ करने के लिए पूछा, तो काका ने उससे एक नाटक रचने को कहा और उसे विस्तार से समझा दिया ।
एक दिन रात के समय वह एक कटा तरबूज अंगोछे में लपेटे हुए लाया । उसकी पत्नी ने देखा अंगोछे से टपक-टपककर लाल बूंदें गिर रही हैं । वह अपनी पत्नी से बोला, ”देख किसी से कहना मत । मैंने एक आदमी का सिर काट लिया है । इसे छिपाना है, नहीं तो मुझे सिपाही पकडू लेंगे और मुझे फांसी की सजा मिलेगी ।”
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उसने अपनी पत्नी से एक फावड़ा मंगवाया और घर के बाए ओर थोड़ा चलकर एक पेड़ के नीचे उस अंगोछे में लिपटे तरबूज को रख दिया । वहीं उसने एक गड्ढा खोदा और उसमें उस तरबूज को अंगोछे सहित गाड़ दिया । ऊपर से मिट्टी डालकर वह जगह समतल बना दी ।
उसकी पत्नी इस घटना से बेचैन हो उठी । अपने पति से कुछ नहीं कहती थी, बल्कि अंदर-ही-अंदर घुटन महसूस कर रही थी । उसे एक दुख-सा महसूस होता था । अब वह मन में रखे इस बोझ से हलका होना चाहती थी । एक दिन उसने अपनी पक्की दोस्त पड़ोसन को यह बात सुना दी । और कहा, ”देख बहन, किसी से कहना मत, नहीं तो मेरे पति को फांसी हो जाएगी ।”
उस महिला को भी वह बात नहीं पची । उसने अपनी पक्की दोस्त पड़ोसन महिला को यह घटना सुनाई और कहा, ”देख बहन, किसी से कहना मत । नहीं तो उसके पति को फांसी हो जाएगी ।” इसी प्रकार एक ने दूसरे से, दूसरे ने तीसरे से, तीसरे ने चौथे से कहा और फिर यह खबर पूरे गांव में फैल गई ।
बहुत-सी औरतों ने यह घटना अपने आदमियों से भी कही । एक दिन ऐसा आया, जब यह खबर इलाके के थाने में पहुंच गई । फिर क्या था ? सुबह तड़के दरोगा और सिपाही उसके घर जा पहुंचे । जब गांव वालों को पता चला तो गांव के तमाम लोग आए । काका भी उसके घर पहुंच गए थे । दरोगा ने सबसे पहले उसकी औरत को धमकाकर पूछा, “बता तेरे आदमी ने सिर कहा गाड़ा है ? नहीं तो तुझे फांसी हो जाएगी ।” उसने डर के मारे वह स्थान इशारा करके दिखा दिया ।
जब उस स्थान को खोदी गया तो अंगोछे में लिपटा हुआ एक कटा तरबूज निकला । जब उसके आदमी को डांटा गया, तो उसने पूरी घटना कह सुनाई । काका ने भी कहा कि इसने अपनी पत्नी की परीक्षा लेने के लिए यह किया था । सब लोग चले गए । दरोगा भी चला गया । वह अपने पति के आगे पानी-पानी हो गई । अपनी पत्नी के सामने ही उसके मुंह से निकल गया:
‘तिरिया से राज छिपे न छिपाए ।’
Hindi Proverb Saying # 2. जैसा करे वैसा पावे, पूत-भतार के आगे आवे:
एक बुढ़िया ने सोचा था कि जब मेरी बहू आएगी तो कुछ काम नहीं करना पड़ेगा । बेटा-बहू दोनों सेवा करेंगे । पति तो युवावस्था में ही खत्म हो गया था । फिर सोचा, मैं दादी बनूंगी और घर स्वर्ग बन जाएगा ।
बुढिया के लड़के की शादी हुई, दादी भी बनी, लेकिन उसका सोचा हुआ असली सपना साकार नहीं हुआ । बुढ़िया का लड़का सवेरे-सवेरे काम पर चला जाता था और पोता स्कूल चला जाता था । उसके बाद बहू बुढ़िया के साथ मनमाना व्यवहार करती ।
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उससे जूठे बरतन मंजवाती । पूरे घर में पोंछा लगवाती । अब उसे फूटी थाली में भोजन दिया जाता था । जब कुछ दिन बहू ने अपने पति और बच्चे के सामने बुढ़िया को फूटी थाली में भोजन दिया, तो पति ने विरोध किया । उससे कहा-सुनी हुई ।
अब वह सबके सामने अपनी सास को फूटी थाली में भोजन देने लगी और अपने पति के विरोध का सामना करती रही । कुछ दिन बाद बुढ़िया के लड़के ने विरोध करना छोड़ दिया । जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता गया, अपनी दादी के प्रति मां के बढ़ते जुल्मों को देखता रहा ।
समझदार होने पर जब उसका विरोध करता, तो उसको भी झिड़की खानी पड़ती, लेकिन वह अपनी दादी के प्रति आदर और सहानुभूति रखता था । वह मन से अनुभव करता था कि घर में दादी के साथ सही व्यवहार नहीं हो रहा है ।
कुछ साल इसी तरह बीतने के बाद दो-चार दिन आराम के आए । बुढ़िया के पोते की बहू आई । जब घर में बहू आई, तो खुशी का वातावरण रहा । रिश्तेदारों के जाने के बाद बुढ़िया के फिर वही दिन आ गए । बुढ़िया से बरतन मंजवाना, बात-बात पर डांटती-डपटती और फूटी थाली में भोजन खिलाती ।
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नई बहू यह सब छिप-छिपकर देखती रहती । समय-समय पर दादी के बारे में अपने पति से पूछती रही । कभी-कभी पतोहू को ससुर से भी जानकारी मिल जाती थी । कुछ दिन बाद बुढ़िया की बहू अपनी पतोहू से भी लड़ने लगी । अब पतोहू को भी पूरे दिन काम में लगाए रखती ।
कभी-कभी पतोहू बुढ़िया के बरतन मंजवाने में सहायता करती, तो बरस पड़ती और कहती, “तेरे लिए ढेरों काम हैं ? अपना काम कर ।” कभी-कभी पतोहू अपनी दादी-सास के आसुओं को देखती, तो पिघल जाती और छिपकर बुढ़िया के पास बैठकर उसके दुख की कहानी सुनती ।
एक बार बुढ़िया बीमार हुई, तो फिर उठी ही नहीं । आठ-दस दिन बीमार रहकर इस दुनिया से मुक्ति पा गई । अब वह पतोहू को भी पूरे दिन काम में लगाए रखती । जब पतोहू से मनमाना करने लगती, तो झगड़ा शुरू हो जाता ।
जब पतोहू ने देखा कि मेरी सास जैसे अपनी सास को खरी-खोटी सुनाती थी, उसी तरह मुझे भी खरी-खोटी सुनाने लगी है, तो उससे रहा न गया । वह भी लड़ने लगी और उससे उसी तरह का व्यवहार करने लगी, जैसा वह अपनी सास के साथ व्यवहार करती थी ।
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अब पतोहू अपनी सास से झाडू लगवाती और बरतन मंजवाती । उसके बाद पतोहू उसी फूटी हुई थाली में खाना परोसकर देने लगी, जिसेने उसकी सास दादी-सास को खाना देती थी । शुरू में जब पतोहू ने सास को फूटी थाली में खाना दिया, तो पतोहू के ससुर और पति ने विरोध किया ।
पतोहू ने जवाब देते हुए कहा, ”जब वह अपनी सास को इस फूटी थाली में भोजन कराती थी, तब तो आप दोनों के मुंह सिल गए थे । कोई कुछ नहीं बोलता था । कितनी सीधी मेरी दादी-सास थी, उसके साथ इसने कैसा व्यवहार किया । उसके आगे तो यह कुछ भी नहीं है । अब क्यों आप लोग इसकी पैरवी कर रहे हैं ?” कोई भी कुछ नहीं बोला ।
अब सास भी जानती थी कि यदि कुछ पतोहू से कहा, तो मार-पीट भी कर देगी । अब पतोहू से कोई कुछ नहीं कहता था । ससुर का बुढ़ापा था । वह अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ इस प्रकार का व्यवहार होते देख नहीं पाता था । उसे गुस्सा आ जाता, तो कुछ-का-कुछ बक देता था ।
जब पतोहू जवाब दे देती थी, तो चुप हो जाता था । जब ससुर भी ज्यादा बोलने लगा, तो उनके साथ भी सास जैसा व्यवहार होने लगा । कभी-कभी एकांत में बैठकर सास-ससुर अपने सुख-दुख की कहानियां याद कर लेते थे और दोनों ही सोचते थे : ‘जैसा करे वैसा पावे, पूत-भतार के आगे आवे ।’
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Hindi Proverb Saying # 3. सीख ताको दीजिए, जाको सीख सुहाय:
जंगल में खार के किनारे एक बबूल का पेड़ था । उसमें लगे पीले फूल महक रहे थे । आसमान में चारों ओर बादल छाए हुए थे । ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी । मौसम बड़ा सुहावना था । इसी बबूल की एक पतली डाल खार में लटकी हुई थी ।
इसी डाल पर बिल्कुल आखिर में बया पक्षी का एक घोंसला था । इसी घोंसले पर बया और बयी दोनों झूल रहे थे और मौसम का आनंद ले रहे थे । बबूल के पास ही सहिजन का पेड़ था, जो हवा के झोंकों में लूम रहा था । बादल तो छाए थे ही, देखते-ही-देखते बिजली चमकने लगी ।
बादल गरजने लगे और मोर-मोरनियों के नृत्य ‘पीकां-पीकां’ की आवाज से सारा जंगल भर गया । टिटहरियां भी आकाश में आवाज करती हुईं उड़ने लगीं । बड़ी-बड़ी बूंदें भी गिरने लगीं और थोड़ी देर में मूसलाधार बरसात होने लगी । इसी बीच एक बदर सहिजन के पेड़ पर आकर बैठ गया ।
उसने पेड़ के पत्तों से छिपकर बचने की बहुत कोशिश की, लेकिन बच नहीं सका । पेड़ पर बैठा-बैठा भीगता रहा । बंदर सोच रहा था कि जल्दी-से-जल्दी वर्षा रुके, लेकिन ठीक उलटा हुआ । ओले गिरने शुरू हो गए । हवा और तेज चलने लगी । सर्दी हो गई ।
बंदर ठँड से कांपने लगा और जोर-जोर से किकियाने लगा । वातावरण अजीब-सा गंभीर हो गया । बंदर की इस हालत को देखकर बया पक्षी से रहा न गया और बोला: ‘पाकर मानुस जैसी काया, ढूंढ़त घूमो छाया । चार महीने वर्षा आवै, घर न एक बनाया ।।’
बंदर ने बया पर तिरछी नजर डाली । पर बया पर घूरने का कोई असर नहीं पड़ा । बया सोचता था कि बंदर मेरा क्या बिगाड़ेगा । घोंसला इतनी पतली टहनी पर है कि मुझ तक आ पाना उसकी ताकत के बाहर की बात है । बया ने बंदर को फिर समझाया, ”हम तो छोटे जीव हैं, फिर भी घोंसला बनाकर रहते हैं ।
तुम तो मनुष्य के पूर्वज हो । तुम्हारे वंशज जब घर बनाकर रहते हैं, तो तुम्हें भी कम-से-कम चौमासे के लिए तो कुछ-न-कुछ बनाकर रहना ही चाहिए । कहीं छप्पर ही डाल लेते ।” बया की इतनी बात सुनते ही बंदर बुरी तरह बिगड़ गया । उसने आव देखा न ताव, उछाल मारकर बबूल के पेड़ पर आ गया ।
कांटों को बचाते हुए उसने उस पतली टहनी को जोर-जोर से हिलाना शुरू कर दिया, जिस पर बया पक्षी का घोंसला था । घोंसला उलटा-सीधा होते देखकर वे उड़कर सहिजन के पेड़ पर बैठ गए । बंदर ने टहनी तोड़कर ऊपर खींच ली । घोंसला हाथ में आते ही बंदर ने नोंच-नोंच कर तोड़ दिया और टहनी सहित घोंसले को नीचे फेंक दिया ।
नीचे खार में वर्षा का पानी तेजी से बह रहा था । घोंसला और टहनी उसी में बहे चले गए । नर बया और मादा बयी, दोनों पूरे दुख के साथ पानी में भीगते रहे । उन्हें बड़ा ही खेद हो रहा था । सामने हरे-भरे और लहलहाते टीले पर एक छोटी-सी कुटिया थी ।
उसके बाहर बैठा एक संत स्वभाव का व्यक्ति माला फेर रहा था । यह सब नाटक वह बड़े ध्यान से देख रहा था । बया और बयी पर उसे तरस आने लगा और उसके मुंह से अचानक निकल पड़ा: ‘सीख ताको दीजिए, जाको सीख सुहाय । सीख न दीजे बांदरे, बया का भी घर जाय ।।’
Hindi Proverb Saying # 4. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी:
श्री कृष्ण बचपन में बहुत नटखट थे । इनको बचपन से ही बांसुरी बजाने की लगन थी । ग्वाले रोजाना गायें चराने जाते थे । श्रीकृष्ण इनके बीच बांसुरी बजाते रहते थे । उनकी बांसुरी की आवाज इतनी सुरीली और मधुर होती थी कि जो भी सुनता था, वह मुग्ध हो जाता था ।
श्रीकृष्ण के युवावस्था तक पहुंचते-पहुंचते बांसुरी की आवाज जादू का काम करने लगी थी । जो भी आवाज सुनता था, वह बांसुरी की ओर इस तरह खिंचता चला आता था जैसे कोई वस्तु चुबक की ओर खिंची चली आती है ।
ग्वालों की तरह ग्वालिनें भी बांसुरी सुनने के लिए श्रीकृष्ण के पास पहुंचती थीं । शुरू-शुरू में ग्वालिनें घंटे-दो घंटे बांसुरी सुनकर चली जाती थीं । धीरे-धीरे ग्वालिनें बांसुरी सुनने में अधिक-से-अधिक समय बिताने लगीं और घर के काम-काज के लिए समय कम रहने लगा ।
कुछ ग्वालिनें ऐसी भी होती थीं, जो घर के अपने छोटे बच्चों को छोड़कर बांसुरी सुनने श्रीकृष्ण के पास चली जाती थीं । श्रीकृष्ण पागल की तरह अपनी बांसुरी बजाने में डूबे रहते । तमाम लड़कियां और ग्वालिनें उनसे प्रेम करने लगी थीं, लेकिन श्रीकृष्ण थे कि अपनी बांसुरी बजाने में डूबे रहते । लोग उन्हें पागल भी कहने लगे थे ।
कभी-कभी बांसुरी की आवाज रात के सन्नाटे को चीरती हुई दूर-दूर गांवों तक जा पहुंचती थी । ग्वालों और ग्वालिनों पर बांसुरी का एक जादू-सा प्रभाव होता और वे बांसुरी सुनने के लिए अपने-अपने घर से निकल पड़ते थे ।
गांवों में बड़ी अव्यवस्था फैल गई । जब घर का काम-काज छोड़कर ग्वालिनें श्रीकृष्ण के पास चली जातीं, तो घर का बचा हुआ काम घर के वृद्ध लोगों को करना पड़ता । उनके छोटे-छोटे शिशुओं की भी देखभाल करनी पड़ती ।
फिर लोक-लाज का सवाल भी उठ खड़ा हुआ था । गांवों की युवा लड़कियां और बहुएं लोक-लाज त्यागकर श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनने पहुंच जाती थीं । जब श्रीकृष्ण से कहा गया, तो उन्होंने कहा, ”मैं तो अपनी बांसुरी बजाने में डूबा रहता हूं । मैं किसी को बुलाने तो जाता नहीं । आप अपने-अपने परिवार वालों को समझाइए कि वे मेरे घर न आएं ।”
बहू-बेटियां न तो घर वालों की बात मानती थीं और न किसी बाहर वालों का उन्हें डर था । अब तो एक ही रास्ता रह गया था कि श्रीकृष्ण बांसुरी बजाना बंद करें । गांवों के मुखिया, जमींदार आदि सभी परेशान थे । उन्होंने नंदबाबा को समझाया, इसके बाद भी कोई हल नहीं निकला ।
गांवों के खास-खास लोग उस क्षेत्र के राजा के पास गए और उनके सामने यह समस्या रखी । सबकी बातें सुनकर राजा ने अपने कारिंदों को आज्ञा दी कि मेरे राज्य में जितने भी बांस के पेड़ हैं, झुरमुट हैं, उनको काट दिया जाए और उनमें आग लगा दी जाए ।
दूसरे दिन सब बांसों के झुरमुट काटकर उनमें आग लगा दी गई । उसी दिन रात के समय श्रीकृष्ण की बांसुरी उठवाकर नष्ट कर दी गई । तब लोगों ने कहा: ‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी ।’
Hindi Proverb Saying # 5. जब रखोगे, तभी तो उठाओगे:
धनीराम नाम का एक व्यक्ति था । वह मेहनत करके अपने परिवार का पालन-पोषण करता था । वह धीरे-धीरे कामचोर बनता गया और एक दिन नाकारा हो गया । बैठे-ठाले ठगी का काम शुरू कर दिया । उसने पहले जान-पहचान वालों से उधार लेना शुरू कर दिया ।
जब लोग पैसे वापस मांगते, तो तरह-तरह के बहाने बना देता । जैसे-जैसे उसके जान-पहचान के लोग आपस में मिलते गए, उसकी पोल-पट्टी खुलती गई । सब यही बात करते कि जबसे उसने पैसे लिए हैं, तब से मिलना ही बंद कर दिया ।
जब जान-पहचान के लोगों ने पैसे देने बद कर दिए, तो वह अपने रिश्तेदारों से उधार के नाम पर पैसे ऐंठने लगा । पहले सगे रिश्तेदारों से पैसे लेने शुरू किए । इसके बाद दूर के रिश्तेदारों से पैसे मांगना शुरू कर दिया । एक दिन वह एक साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति के पास गया ।
उसने बैठाकर पानी पिलाया । फिर उससे पूछा, ”तुम धनीराम ही हो न ?” उसने हां में सिर हिलाया । फिर पूछा, “कहो, कैसे आना हुआ इतने वर्षों बाद । सब ठीक-ठाक तो है ।” धनीराम ने उत्तर देते हुए कहा, ”सब ठीक तो है, लेकिन…। काम नहीं मिल पा रहा है । घर में तंगी आ गई है । यदि कुछ रुपए उधार दे दें, तो हालत संभल जाएगी ।”
वह व्यक्ति बात करते हुए उठा और सामने आले में पचास रुपए रख आया । जब धनीराम चलने के लिए खड़ा हुआ, तो उस व्यक्ति ने आले की ओर इशारा करते हुए कहा, “सामने आले में पचास रुपए रखे हुए हैं, ले जाओ । जब हो जाएं, इसी में रख जाना ।” उसने आले में से रुपए उठाए और चला गया ।
इसी प्रकार ठगी से वह अपनी नैया खेता रहा । किसी ने दोबारा दे दिए, किसी ने नहीं दिए । अब वह बैठा-बैठा गणित लगाता रहता कि कोई छूट तो नहीं गया, जिससे पैसे मांगे जा सकते हैं या किस-किस के पास जाएं ।
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कितना-कितना समय बीत गया जिनके पास दोबारा जाया जा सके । ऐसे लोगों की उसने सूची बनाई, जिनसे पैसे लिए हुए तीन साल हो गए थे । इस सूची के लोगों के पास जाना शुरू कर दिया, लेकिन बहुत कम लोगों ने पैसे दिए ।
अचानक उसे साधु प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की याद आई । सोचा, अब तो वह भूल गया होगा । उसी के पास चलते हैं । जब धनीराम वहां पहुंचा तो उसे बैठाया । पानी पिलाया और नाश्ता कराया । उस व्यक्ति ने पूछा, ‘सब ठीक-ठाक तो है ।’
धनीराम ने उत्तर देते हुए कहा, “सब ठीक तो है, लेकिन…।” उसने फिर पूछा, “लेकिन क्या ?” धनीराम बोला, ”बच्चे भूखे हैं । काम भी नहीं मिल रहा है । कुछ पैसे उधार दे देते, तो काम चल जाता । ”ले जाओ उसमें से ।” आले की ओर इशारा करते हुए उस व्यक्ति ने कहा ।
वह खुश होता हुआ उठा कि यह वास्तव में पिछले पैसे भूल गया है । इसने न पिछले पैसों की चर्चा की और न मांगे ही । सोचते-सोचते वह आले तक आ गया । उसने आले में हाथ डाला तो कुछ नहीं मिला । धनीराम ने उस व्यक्ति की ओर देखते हुए कहा, “इसमें तो कुछ नहीं है ?” इतना सुनकर वह बोला, ‘जो तुम पहले पैसे ले गए थे, क्या रखकर नहीं गए थे ?’
उसके मुंह से कोई उत्तर नहीं निकला । उसने न में सिर हिलाते हुए उत्तर दिया । उस साधु प्रवृत्ति वाले व्यक्ति ने सहज रूप से कहा, तब फिर कहां से मिलेंगे ‘जब रखोगे, तभी तो उठाओगे’ । वह चुपचाप बाहर आया और अपना-सा मुंह लिए चला गया ।