List of seven most popular Hindi Stories for Learning!


Contents:

    1. बेला की महक |

    2. पर्मेस्वर का संदेश |

    3. कहानी परी महल की |

    4. परीलोक से मिला निमंत्रण |

    5. परी की दयालुता |

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    6. बात का घाव |

    7. आलसी का भाग्य |


Hindi Story # 1 (Kahaniya)

बेला की महक |

वह दूध जैसी सफेद थी । सफेद रंग के ही रेशमी कपड़े पहनती थी और चांदनी रात में ही बाहर निकला करती थी । जब वह हवा में उड़ती थी तो आस-पास के लोगों को बेला के फूलों की सुगंध आती थी । लोग उसे बेला परी कहते थे ।

नगर के राजा का नाम था जमदग्नि । प्रजा उसका बहुत आदर करती थी । वह भी हमेशा प्रजा का बहुत ख्याल रखता था । समय-समय पर प्रजा में खाने की वस्तुएं, कपड़े आदि बंटवाया करता था । एक दिन राजा को उदास देखकर उसके मंत्री ने उसकी उदासी का कारण पूछा ।

राजा ने बताया : ”रात को सपने में मुझे बेला परी दिखाई दी थी । उसने मुझ पर स्वार्थी होने का आरोप लगाया, लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, वह गायब हो गई ।”  मंत्री ने कहा : ”महाराज! सपने तो सपने होते हैं ।

सारी प्रजा आपकी उदारता का गुणगान करती राजा को मंत्री का उत्तर सुनकर भी संतुष्टि नहीं हुई उन्होंने मन-ही-मन निश्चय किया कि वह बेला परी से मिलकर उसकी बात की सच्चाई जानकर रहेगा । कुछ समय पश्चात सुकल पक्ष आया तो राजा अपने मंत्री के साथ घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर चल दिया, क्योंकि बेला परी रात में ही बाहर निकलती थी ।

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राजा और मंत्री दोनों को जंगल में भटकते-भटकते चौदह दिन व्यतीत हो गए । शुक्ल पक्ष का केवल एक ही दिन बाकी रह गया था, इसलिए वे दोनों उदास होकर झील के किनारे एक पेड़ के नीचे जा बैठे । ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी । खिली हुई चांदनी में झील का पानी मोतियों जैसा झिलमिला रहा था । वातावरण शांत था । मंत्री को बातें करते-करते नींद आ गई हे, लेकिन राजा जागता रहा ।

थोड़ी देर बाद राजा ने देखा कि चांदी की एक डोर झील में लटक रही है । उस डोर को पकड़कर सफेद रंग की एक परी तेजी से नीचे उतरती दिखाई दी । उसके पंख हिलने के कारण आस-पास तेज हवा चलने लगी ।

राजा जन्मदिन उसे देखते ही समझ गए कि यह वही बेला परी है, जो उन्हें सपने में दिखाई दी थी । बेला परी की सुंदरता देखकर राजा भौचक्का रह गया । वह दम साधकर उसे निहारने लगा । मन में विचार करने लगा कि कैसे वह इस परी से बात करे ?

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परी ने अपने पंख उतारकर झील के किनारे रख दिए और शांत भाव से झील के जल में तैरने लगी । राजा को अचानक एक उपाय सूझा । जब परी ने झील के जल में डुबकी लगाई तो वह तेजी से लपककर परी के पख उठा लाया ।

परी नहाकर बाहर निकली तो अपने पख न पाकर बहुत परेशान हुई । वह बिना पंखों के उड़ नहीं सकती थी । बाद में परी ने देखा कि उसके पंख राजा के पास हैं, तब वह राजा से अपने पंख वापस कर देने के लिए प्रार्थना करने लगी ।

राजा ने कहा : “सुंदर परी! मैं दो शर्तों पर तुम्हारे पंख वापस कर सकता हूं । पहली शर्त यह हे कि तुम प्रतिदिन मुझसे मिलने के लिए आया करोगी । दूसरी शर्त यह है कि तुम्हें सिद्ध करना होगा कि मैं स्वार्थी हूं ।” बेला परी ने राजा की बात मान ली, लेकिन उसने भी अपनी दो शर्तें रखी ।

पहली यह कि वह केवल सुबल पक्ष में ही उससे मिलने आया करेगी । दूसरी यह कि राजा को उससे एक कहानी सुननी पड़ेगी । राजा जमदग्नि ने भी उसकी दोनों शर्तें मान ली । अब बेला परी ने कहानी सुनानी शुरू की । “एक शिकारी अपने कुत्ते के साथ जंगल में शिकार करने गया ।

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जब वह वापस लौट रहा था तो रास्ते में उसे एक टूटी हुई बैलगाड़ी मिली । बैलगाड़ी में सोने की सिल्लियां और चांदी की छड़ियां लदी हुई थी । गाड़ीवान पास में ही उदास बैठा था । शिकारी को देखकर गाड़ीवान ने कहा- ‘मेरी गाड़ी का पहिया खराब हो गया है ।

मुझे गांव जाकर बढ़ई को लाना होगा । क्या तब तक तुम मेरी गाड़ी की रखवाली करोगे ?” शिकारी मान गया । गाड़ीवान बढ़ई की खोज में गाव की ओर चला गया । शिकारी और उसका कुत्ता गाड़ी की निगरानी करने लगे । काफी देर हो गई । अंधेरा होने लगा, लेकिन गाड़ीवान न लौटा ।

शिकारी को अपने घर जल्दी लौटना था, क्योंकि उसकी मा को दिखाई नहीं देता था और वह बीमार भी थी । उसे मां के लिए खाना भी बनाना था । शिकारी ने अपने कुत्ते से कहा : ‘तुम गाड़ी की रखवाली करना । जब तक गाड़ीवान न आ जाए, तब तक कहीं मत जाना । मैं घर जा रहा हूं ।’

कुत्ता पूरी चौकसी से गाड़ी की रखवाली करने लगा । वह गाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाने लगा, ताकि बैल कहीं दूर न चले जाए । आधी रात के करीब गाड़ीवान एक बढई को लेकर आया । गाड़ीवान ने जब यह देखा कि उसका सोना-चांदी ज्यों-का-त्यों सुरक्षित रूप से गाड़ी में लदा है तो वह बहुत खुश हुआ ।

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इनाम के तौर पर उसने चांदी की पाँच छड़ियां कुत्ते को दे दीं । कुत्ता सुबह होते-होते घर लौटा । शिकारी ने देखा कि कुत्ते के मुँह में छड़ियां हैं । उसने सोचा कि कुत्ता यह छड़ियां चुरा लाया है । तब उसने वे छुट्टियां कुत्ते के मुंह से निकाली और उस पर वार कर दिया । कुत्ता बेचारा वहीं ढेर हो गया ।”

इतना कहकर बेला परी चुप हो गई । राजा ने पूछा : ”आगे क्या हुआ ?” परी बोली : ”अब आगे सुनाने को रह ही क्या गया है । बेचारे उस स्वामिभक्त कुत्ते को शिकारी ने मार डाला और तुम्हारे मुह से ‘आह!’ तक न निकली । फिर भी तुम अपने आपको दयालु और परोपकारी समझते हो ।”

राजा को लगा कि उनसे कहीं कुछ गड़बड़ हो गई है । इतने में उनका मंत्री भी वहां आ चुका था । मंत्री ने बेला परी को जवाब दिया : ”लेकिन हमारे राजा जो दान देते हैं, अकाल पड़ने पर लगान माफ करते हैं, उसमें उनका क्या स्वार्थ है ?”

बेला परी ने कहा : ”उसमें स्वार्थ है । राजा को मालूम है कि यदि उन्होंने लगान माफ नहीं किया तो उनके राज्य में अशांति फैल जाएगी ।” राजा को बेला परी की बात ठीक लगी । उस दिन उन्होंने निश्चय किया कि अब वह दान के बदले लोगों को काम देगा ।

फिरराजा ने वैसा ही किया । कुछ ही वर्षों में राज्य में खूब खेती होने लगी ।  कोई बेरोजगार और भूखा न रहा । राजा ने नगर में जगह-जगह बेला फूल के पौधे लगवाए । नगर बेला की सुगंध से हमेशा सुगंधित रहने लगा ।


Hindi Story # 2 (Kahaniya)

पर्मेस्वर का संदेश |

बहुत समय पहले की बात है, तब मनुष्य और जानवर आपस में लड़ते नहीं थे । संसार बहुत ही अद्‌मुत था । पहाड़ों से मीठे झरने बहते थे । धरती बहुत उपजाऊ थी । खाने-पीने की चीजों की कोई कमी नहीं थी । दूध-दही की नहि, बहती थी । फल और फूलों से धरती सजी रहती थी ।

भगवान पहाड़ों की सबसे ऊंची चोटी पर निवास करते थे । वहा मानव का जाना मना था । भगवान अपनी बनाई इस दुनिया को देखकर, स्वय ही प्रसन्न होते रहते थे । उस समय लोग आपस में बहस और झगड़ा नहीं करते थे । जीव-जन्तु, पशु-पक्षियों और मानव में कुछ भेदभाव नहीं था ।

धीरे-धीरे मनुष्य अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगे । लोग आपस में लड़ने-झगड़ने लगे । जब भी दो जाति के लोग कहीं मिलते तो वे सोचने लगते कि किस की जाति अधिक उत्तम है ? अपने-अपने गांव में भी जब दो-चार लोग बैठते तो यही सोचते कि एक गाय काली है तो दूसरी भूरी और तीसरी सफेद क्यों ?

एक बार तो उन्हें यह सोचते-सोचते रात से सुबह हो गई कि आग की लपटें कहा जाती हैं ? मनुष्य प्रत्येक बात का उत्तर भगवान से चाहता था, क्योंकि मानव स्वयँ भगवान के पास नहीं जा सकता था, इसलिए वह किसी-न-किसी जानवर को भगवान के पास अपने प्रश्नों सहित भेजता ।

जानवर मनुष्य के झगड़ालू स्वभाव से डरकर चुपचाप उसका आदेश मानते । ऐसी हालत में जानवरों को अनेक ढलानें और चढ़ाइयां पार करनी पड़ती । कभी बड़े-बड़े पत्थर उनका मार्ग रोकते तो कभी नदी-नाले । कहीं तेज हवाओं का उन्हें सामना करना पड़ता तो कहीं बर्फीले तूफानों का ।

एक शाम ऐसी ही बहस छिड़ी । रात के समय सब मनुष्य इकट्‌ठे हुए । उनके मन में यह बात उठी की मनुष्य जब सोता है तो उसका शरीर सोता है या नहीं ? मनुष्य के स्वप्न सच्चे होते है या नहीं ? उनका कोई अर्थ होता है या नहीं ?

बहस बढ़ती हुई देखकर सब जानवर डरकर भाग गए और ऐसी जगह गए कि गांव वाले उन्हें पा न सके । बहस होते-होते जानवर भेजकर इन प्रश्नों का उत्तर भगवान से मंगवाने की बात उठी । मनुष्य ने हर जगह का, लेकिन कोई भी जानवर कहीं भी नहीं मिला ।

केवल एक गिरगिट और छिपकली एक चट्‌टान पर लेटे सूरज की किरणों के इंतजार में मिले । जब मनुष्य को कोई और न मिला तो मजबूरी में उन्होंने गिरगिट और छिपकली को ही भगवान के पास भेजने का निश्चय किया ।

दोनों अपनी यात्रा पर मस्त होकर चल दिए । शुरू-शुरू में उनके पास बहुत-सी प्यारी-जारी बातें करने को थी । उन्हें यात्रा बहुत अच्छी लगी, किंतु धीरे-धीरे जैसे-जैसे दिन ढलने लगा और रात का अंधेरा चारों ओर फैलने लगा, वैसे-वैसे उन्हें यात्रा में मुश्किलें आने लगी ।

डर भी लगने लगा । अंधेरे में वे दोनों बार-बार अपना रास्ता भूल जाते थे । आखिरकार रात के अंतिम पहर में वे दोनों भगवान के पास पहुच ही गए । भगवान ने उनके आने का कारण पूछा । उन दोनों ने जब उन्हें कारण बताया तो कारण जानकर भगवान बहुत नाराज हुए ।

उनकी आखों से अंगारे बरसने लगे । पहाड़ों पर भयंकर आवाजें गूंजने लगी । भगवान उनसे बोले : ”यह मनुष्य इतना पाकर भी खुश नहीं है । बिना किसी कारण के झगड़े और बहस करता रहता है । बार-बार प्रश्न करता है । अब कोई ऐसा उपाय करना पड़ेगा कि तुम लोगों को बार-बार भागकर मेरे पास न आना पड़े ।”

”भगवान! हम ही नहीं, सभी जीव-जन्तु और पशु-पक्षी मनुष्य के इस स्वभाव से दुखी है । कई बार तो हम लोग घंटों तक कहीं-न-कहीं छिपे पड़े रहते है ।”  गिरगिट और छिपकली एक साथ बोले । ”तो आज से पशु-पक्षियों का भी मेरे यहां आना बद किया जाता है । मैं अब मनुष्यों के पास दो संदेश तुम्हारे द्वारा पहुंचा रहा हूं ।

जो संदेश उनके पास पहले पहुंचेगा, वही मनुष्य के अघामी जीवन का फैसला करेगा ।” भगवान छिपकली की ओर मुड़े । बोले : ”छिपकली! तुम्हें यह उत्तर लेकर जाना है कि मनुष्य का दिमाग भी ईश्वर के दिमाग की तरह ही तेज हो जाए । जब वह सोए तो उसे अच्छे-अच्छे स्वप्न आएं ।

स्वप्न में भी उसे उन बातों का पता चले, जो वह नहीं जानता । जब वह उठे तो उसके स्वन सच्चे हो जाएं । उनके गाव में पहले की तरह दूध-दही की नदियां बहती रहें । मेवों के पेड़ हमेशा हरे-भरे रहें । उनका जीवन और भी अधिक शांति और सुख से भर जाए ।”

इसके बाद भगवान गिरगिट की ओर मुड़े और बोले : ”गिरगिट! तुम यह संदेश लेकर जाओ कि हे मनुष्य, तेरे दूध, शहद और मेवों से भरे दिन समाप्त हो गए । अब तुझे अपनी जरूरत के लिए खुद मेहनत करके कमाना होगा । अब तू पड़ोसियों के साथ शांति से नहीं रह पाएगा । तुम लोगों के बीच झगड़े होंगे ।’

छिपकली और गिरगिट भगवान को नमस्कार कर वापस चल पड़े । पहाड़ की उतराई तक तो दोनों साथ-साथ चले, । उतराई के बाद आया रक बड़ा-सा मैदान । मैदान के आते ही छिपकली थकने लगी और धीरे-धीरे वह गिरगिट से पीछे रह गई ।

गिरगिट ने बिना थके अपनी यात्रा जारी रखी । छिपकली इतनी धीरे-धीरे चल रही थी कि कभी तो ऐसा लगता था कि वह चल ही नहीं रही है । जब सूर्य पहाड़ों के पीछे छिप गया तो वह अपने पैरों में सिर दबाकर सो गई ।

अगले दिन शाम ढले थकी-मांदी छिपकली अपने गाव में पहुंची । गांव की पहली झोंपड़ी में जाकर उसने मनुष्य को भगवान का संदेश सुनाया । वहां रहने वाला मनुष्य उस पर हंसने लगा । बोला : ”छिपकली! यहां से चली जाओ । अपने झूठ को लेकर मेरे पास मत आओ ।

अगले गांव में जाकर अपनी झूठी कहानी सुनाओ । शायद वहां तुम्हारी यह झूठी कहानी कोई सुन ले । हमें तो गिरगिट ने सब-कुछ पहले ही साफ-साफ बता दिया है । सुबह से पहले वहा पहुंचो, क्यों कि कल तो हम लड़ाई में मारकर यह सिद्ध कर देंगे कि हम बहुत शक्तिशाली हैं ।

हमारे सामने कोई नहीं टिक सकता । हो सकता है वे लोग तुम्हारी बातों में आ जाएं ।” छिपकली ने उदास होकर धीरे-से वह झोपड़ी छोड़ी और अगले गांव की ओर चल पड़ी । जब वह अगले गांव में पहुंची तो उसने गांव के संधिया को अपने हथियार तेज करते हुए देखा ।

फिर भी उसने अपनी ओर से उसे पूरा संदेश सुनाने की कोशिश की, क्षिं उसने भी उसकी बात का विश्वास नहीं किया । वह बोला : ”छिपकली! भाग जा यहां से । मैं सुबह ही इस विषय में गिरगिट से सब-कुछ सुन चुका हूं । हमें बहका मत ।

लगता है, तू दूसरे गाँव के लोगों द्वारा यहाँ भेजी गई है । शायद वे जान गए हैं कि कल सुबह उनकी हार होगी ।” छिपकली ने निराश होकर वह गाँव भी छोड़ दिया और अगले गाँव की ओर चल  पड़ी । वहां पहुंचकर भी उसे मनुष्य द्वारा भर्त्सना सुनने को मिली ।

इसी तरह से एक के बाद दूसरा गाँव घूमती छिपकली कई गांवों में पहुंची, लेकिन वहां गिरगिट पहले ही पहुंच चुका था । छिपकली ने उम्मीद नहीं छोड़ी । आज भी वह एक गांव से दूसरे गांव में इस आशा के साथ भटक रही है कि शायद वह कभी उस स्थान पर पहुँच जाए, जहां के मनुष्यों के पास गिरगिट अभी तक न पहुंचा हो और तब वह उसे भगवान का सही संदेश दे सके ।

भगवान द्वारा बनाई गई यह दुनिया बहुत ही सुँदर है । मनुष्य ही अपने अकरणीय कार्यों से इसे हषइत करता है । मनुष्य को चाहिए कि वह ईश्वर की बनाई इस अनमोल कृति का सम्मान करे । इसके सौंदर्य में वृद्धि करे और प्राणी को अपने जैसा समझकर सबके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करे ।


Hindi Story # 3 (Kahaniya)

कहानी परी महल की |

किसी नगर में एक राजा राज किया करता था । एक दिन वह राजा अपने दरबार में बैठा हुआ था । तभी उसकेमंत्री नेउससे कहा : “राजन! एक आदमी कह रहा था कि कल रातउसने आकाश में उड़ती हुई एक परी देखी है ।”

यह सुनकर राजा ने उस आदमी की बुलवाया । वह बेचारा डरते-डरते राजा के पास पहुंचा । राजा ने उससे पूछा : ”क्या तुमने सचमुच परी देखी है ?” ”हां महाराज!” वह व्यक्ति बोला-वह बहुत सुदर पोशाक पहने हुए थी । उसके हाथ में एक जादू की छड़ी थी ।

उसके पख बहुत ही खूबसूरत थे । वह आकाश में उड़ती हुई जा रही थी ।”  राजा ने उसे जोर से डाटा : ”झूठ बोलते हो तुम । भला परियां भी कहीं होती हैं । नाहक लोगों को बहकाते हो ।” फिर राजा ने अपने सिपाहियों से कहकर उस व्यक्ति को कारागार में डलवा दिया ।

दरबार खत्म होने पर राजा अपने महल में आया । वह बहुत उदास था । रानी ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने कहा-आज दरबार में एक आदमी कह रहा था कि उसने परी देखी है ।  भला परियां भी कहीं होती हैं । मैंने उस आदमी को अफवाहें फैलाने के अपराध में कैद में डलवा दिया, लेकिन मेरे मन में यह शंका बनी हुई है कि उसकी बात सच न हो ।”

रानी ने सुना तो बोली : ”महाराज! यदि परियां नहीं होती तो उनकी कहानियां लोग क्यों सुनते-सुनाते ? आपने उस आदमी को दड देकर अच्छा नहीं किया ।” राजा चुप हो गया । कुछ देर बादउसने भोजन किया और सोने के लिए अपनेकक्ष में चला गया ।

थोड़ी ही देर बाद राजा ने देखा कि एक परी सामने खड़ी मुस्करा रही है । सारा कमरा रंग-बिरंगी रोशनी से भरा हुआ है । राजा चकित हो गया । परी उससे बोली : ”तुम कहते थे कि परियां नहीं होती । देखो, मैं परी हूं । तुम्हें अभी भी विश्वास न हो तो मैं तुम्हें मछली बना देती हूं ।”

यह कहकर उसने अपनी जादुई छड़ी पुमाई, राजा मछली बन गया । परी ने उसे एक तालाब में छोड़ दिया । इस बीच एक दूसरी परी वहां आ गई । उसने सब-कुछ देख लिया था । उसने पहली परी से कहा : ”तुमने राजा को मछली बनाकर अच्छा नहीं किया ।”

पहली परी को लेकर दूसरी परी समुद्र के किनारे गई । समुद्र में तरह-तरह की मछलियां थी । दूसरी परी ने कहा : ”देखो, कितनी सुंदर मछलियां हैं, किंतु ये चुप क्यों हैं ?” पहली परी बोली: ”मछलियां बोल कहा सकती हैं ? इनकी बोली को भला कौन सुन-समझ सकता है ?”

”तुमने राजा को मछली बनाकर उसे दंड दे दिया । वह भी अब बोल नहीं सकता । जब वह बोल नहीं पाएगा तो तुम कैसे समझोगी कि राजा अब परियों के बारे में क्या सोचता है ? हमें उसे फिर से राजा बनाकर पूछना चाहिए कि अब वह परियों के बारे में क्या सोचता है ?”

दोनों परियां उस तालाब के किनारे गईं, जहां राजा मछली बना पानी में तैर रहा था । पहली परी ने जादू की छड़ी पुमाई तो मछली बना राजा फिर से अपने रूप में आ गया । दूसरी परी ने अपनी जादुई छड़ी पुमाई तो राजा और दोनों परियां आकाश में उड़ गईं ।

अब राजा आकाश में लटक रहा था । दोनों परियां उसके अगल-बगल खड़ी मुस्करा रही थी । राजा बेहद डर रहा था । तभी दूसरी परी ने छड़ी घुमाई । आकाश में एक महल बनकर तैयार हो गया । पहली परी राजा को लेकर महल में गई ।

उसने राजा को एक सिंहासन पर बैठाया । अब राजा बहुत खुश था ।  पहली परी ने फिर छड़ी घूमाई तो के चारों ओर खिल बाग-बगीचे लग । दूसरी परी ने छड़ी घूमाई महल सुंदर-सुंदर फूल खिल गए । बाग-बगीचे लग गए । दूसरी परी ने छड़ी घुमाई तो चारों ओर शीतल मंद-सुगंध वाली हवा चलने लगी । पेड़ों पर चिड़िया चहचहाने लगी ।

उसके बाद पहली परी ने पुन: छड़ी पुमाई तो राजा के सामने एक मेज और उसके ऊपर फल और खाने का सामान आ गया । उसके बाद राजा ने पेट भरकर खाना खाया । राजा यह सब देखकर सोच रहा था कि परियां कितनी सुँदर, कितनी अच्छी होती हैं । आज तक मैं बेकार ही परियों की निंदा करता रहा ।

फिर उसने दोनों परियों से कहा : “मैंने अपनी गलती स्वीकार कर ली है । अब मैं परियों के बारे में कोई शंका नहीं करूंगा ।” यह सुनकर दूसरी परी ने अपनी छड़ी पुमाई । राजा नीचे उतरने लगा । अपने महल में जहां वह सो रहा था, वहीं फिर से आ गया ।

राजा के दिन-भर गायब रहने के कारण पूरे दरबार में और राज्य में चिंता की लहर दौड़ गई थी । उसके लौटने पर चारों ओर खुशियां मनाई जाने लगी । इस बीच दोनों परियों ने सोचा कि क्यों न वह ‘आकाश महल’ राजा को उपहार में दे दिया जाए ।

यही सोचकर दूसरी परी ने अपनी छड़ी पुमाई तो आकाश में भटकता हुआ वह महल राजा के महल के पास ही आकर खड़ा हो गया । मंत्री ने यह सूचना राजा को सुनाई: ”महाराज! आपके महल के बगल में संगमरमर का एक भव्य महल रातों-रात बन गया है ।”

राजा वहां गया तो देखा कि वह भव्य महल आकाश वाला ही महल है । वह महल के अंदर गया तो देखा कि वही दोनों परियां महल में खड़ी मुस्करा रही है । उन्होंने राजा से कहा : ”महाराज! यह महल हम परियों की ओर से भेंटस्वरूप स्वीकार करें ।” इतना कहकर परियां अंतर्धान हो गईं ।

राजा ने उस महल के चारों ओर पक्की दीवार बनवा दी । उसने उसका नाम रखा परी महल । अगले दिन राजा ने उस आदमी को कैदखाने से मुक्त कर अपने पास बुलवाया, जिसने परी को देखने की बात कही थी । वह आदमी आया तो राजा ने उससे क्षमा मांगी और उसे अपने दरबार में एक सम्मानित पद देकर राजकीय सेवा में नियुक्त कर दिया ।

शिक्षा:

आंख और कान में कुछ ही दूरी अंतर होता है, किंतु आखों से देखी हुई बात सच होती है और कानों से सुनी हुई झूठी । हमें किसी बात पर विश्वास अपनी आखों से देखकर और उसे पूरी तरह से परखकर ही करना कहिए ।


Hindi Story # 4 (Kahaniya)

परीलोक से मिला निमंत्रण |

गेलान गांव जंगल के किनारे बसा था । वहां की धरती उपजाऊ और पानी मीठा था । लोग मिल-जुलकर रहते और मेहनत से काम करते थे । येरान इस गांव का सबसे सुंदर, साहसी और नेक दिल युवक था ।  वह हर किसी की सहायता के लिए तत्पर रहता था, इसलिए गांव वाले उसे जी-जान से चाहते थे ।

बस, एक तोशा पहलवान उसे पसंद नहीं करता था । वह उससे जलता था । फिर भी येरान उसे पूरा सम्मान देता था । तोशा का बेटा तो येरान की गोद में खेलकर ही बड़ा हुआ था । तोशा की पत्नी इरना येरान को अपना भाई मानती थी ।

एक बार गांव में एक परदेसी ने आकर डेरा डाला । उसकी बातों में बला का जादू था । धीरे-धीरे उसने लोगों को गुमराह करना शुरू कर दिया । येरान लोगों को समझाता रहा, पर उसकी कौन सुनता ? परदेसी लोगों में फूट डालकर चलता बना ।

देखते-ही-देखते गेलान गाँव के लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए । बहुत-से परिवार उजड़ गए, घर जलकर राख हो गए । हर व्यक्ति दूसरे पर संदेह करने लगा । डर के कारण लोगों ने खेतों पर काम करने जाना बंद कर दिया । खेत जंगल बन गए, जिस पर ऊंची, कंटीली झाड़ियां खड़ी हो गई ।

धीरे-धीरे पालतू जानवर मरने लगे और तालाब, कुएं गंदे होकर सड़ने लगे । समय बीता, लोगों को येरान की बातें याद आने लगी । सबको पछतावा हुआ, पर अब देर बहुत हो चुकी थी । सब कुछ खत्म हो चुका था । हंसता-खेलता गांव भूतों का डेरा बन चुका था ।

न खाने को अन्न था और न पीने को साफ पानी । येरान ने सब को इकट्‌ठा किया और सुझाया कि सब लोग क्यु समय केलिए कहीं और चलेजाएं, परजाएं कहां, यह तय न हो सका । तभी येरान की पड़ोसन इरना ने विनती की : “मेरे बच्चे तीन दिन से भूखे हैं ।

किसी के पास खाने के लिए कुछ हो तो खुदा के लिए मुझे दे दो ।” सभी ने आखें झुका ली । किसी के पास कुछ होता तो देता और कुछन-कुछ अपने बच्चों के लिए भी तो रखना ही था । सूरज ढल चुका था । बस्ती में सन्नाटा छा गया था । येरान को नींद नहीं आ रही थी ।

वह उठा और जंगल की ओर चल दिया । अंधेरे में वह बार-बार झाड़ियों में उलझता और कांटों की चुभन झेलता हुआ जंगल के बीच में पहुंच गया, पर एक भी फल उसके हाथ न लगा । उदास और निराश येरान स्वयं से बोला : ‘अब मैं क्या ले जाऊं उन बच्चों के लिए ? काश ! उजियारा होता !’

तभी जंगल दूर-दूर तक सुनहरे प्रकाश से जगमगा उठा । येरान ने देखा, एक सुनहरे पंखों वाली परी उसकी ओर देख रही थी । वह बोली : ”येरान! तुम जैसे नेक दिल इसान की मदद करने में हमें प्रसन्नता होती है । इस जगल के फलों को हाथ न लगाना ।

यह सब विषैले हो गए हैं । यह लो, स्वर्ग का फल । इसके खाने से तुम्हारे दुख शीघ्र ही दूर हो जाएंगे ।” यह कहकर परी ने उसे एक फल दिया और अंतर्धान हो गई । फल लेकर जैसे-तैसे येरान घर लौटा और पड़ोसी के बच्चों को दे दिया । फल खाते ही उनके चेहरे खिल उठे ।

येरान थका-मांदा सो गया । रात आधी ही बीती होगी कि परी फिर प्रकट हुई । उसने येरान से कहा : ”फल तो तुमने दूसरों में बांट दिया, जबकि तुम स्वयं भी बहुत भूखे हो और मुसीबत में हो । अब अच्छा यही रहेगा कि तुम लोग अभी यह गांव छोड़कर कुछ समय के लिए जंगल के उत्तर में चले जाओ ।”

”पर इस घोर अंधेरे में हम उस भयानक जंगल के बीच रास्ता कैसे खोज पाएंगे ?” येरान ने पूछा ।  ”अपना दायाँ हाथ दिखाओ ।” परी बोली । येरान के हाथ को उसने अपनी छड़ी की नोक से ध्वुा ही था कि प्रकाश का एक तेज सैलाब फूट पड़ा । ऐसा लगा जैसे सूरज निकल आया हो ।

परी ने कहा : ”अब उजियारा तुम्हारी मुट्‌ठी में है । उठो और निकल पड़ी यात्रा पर ।” येरान ने सबको जगाया । उसके हाथ से प्रकाश फूटता देखकर सभी चकित थे । पूरा गांव येरान के पीछे चल पड़ा । रास्ता कठिन था, पर सब एक-दूसरे को संभालते, सहारा देते आगे बढ़ते जा रहे थे ।

तभी एक औरत बोल उठी : ”तोशा! तेरी डयोढी में वह बुढ़िया थी न, वह शायद वहीं रह गई ।” तोशा ने उस औरत की बात सुनकर भी अनसुनी कर दी, लेकिन लोग खुसर-फुसर करने लगे । बात येरान के कानों तक पहुंची । ”तुम सब यही ठहरो । मैं उसे लेकर आता हूं ।” येरान ने कहा ।

लोग चीखे : ”नहीं, तुम इस अंधेरे भयानक जंगल में हमें यूं छोड़कर नहीं जा सकते । जंगल के खतरनाक जानवर हमें खा जाएंगे ।” येरान ने उन्हें समझाने का प्रयास किया : ‘जंगली जानवर बिना कारण किसी पर हमला नहीं करते । तुम सब यही इकट्‌ठे होकर बैठ जाओ । मैं वह गया और यह आया ।’

”नहीं, अगर तुम्हें जाना ही है तो अपना यह रोशनी वाला हाथ देते जाओ ।” एक ने कहा और एक झटके में कटार से उसका हाथ काट लिया । येरान कष्ट सहते हुए भी मुस्कराया और गांव की ओर लौट चला । येरान जब उस बुढ़िया को लेकर आया तो भोर का हल्का उजाला ज्जै चुका था ।

उसने देखा कि उसके सभी साथी इधर-उधर बेहोश पड़े हैं । उसका कटा हुआ हाथ भी वहीं पड़ा था, किंतु उसमें से प्रकाश नहीं फूट रहा था । वह उदास हो गया । तभी उसे सुनहरी परी की आवाज सुनाई दी : ‘येरान! ये सब स्वार्थी और लोभी व्यक्ति थे ।

इन्होंने जंगल के फल खाए और बेहोश हो गए । तुम बुढिया को लेकर उत्तर दिशा में आगे बढ़ जाओ । हमने तुम्हारे लिए वहां एक सुनहरी महल बनवाया है । अब देर न करो ।” ”पर तुम हो कहां ? मुझे दिखाई क्यों नहीं देती ?” येरान ने पूछा ।

परी बोली : ”तुम दिन के उजाले में मुझे नहीं देख सकते । मैं तो तुम्हारे सामने खड़ी हूं । तुमसे जो कहा गया है, वह जल्दी करो ।” ”मगर मैं अपने इन साथियों को इस हालत में छोड्‌कर कैसे चला जाऊं ? इन्हें मैं ही तो यहां लाया था ।”

”क्या तुमने उसे भी क्षमा कर दिया, जिसने तुम्हारा हाथ काटा था?” परी ने सवाल किया । हार शायद हफ्तों की भूख और जंगली जानवरों के डर के कारण उसने ऐसा किया होगा ।” येरान ने कहा । ”ठीक है । अब तुम अपना कटा हुआ हाथ उठाओ और जोड़ लो ।” परी ने कहा ।

येरान ने अपना कटा हुआ हाथ जमीन पर से उठाकर जोड़ लिया । हाथ ऐसे जुड़ गया, जैसे कभी कटा ही न हो । उंगलियां भी पहले की तरह काम करने लगी । तभी परी ने कहा : ”यह हाथ तुम जिसके भी सिर पर रखोगे, वह भला-चंगा हो  जाएगा ।

तुम्हारे इस हाथ में अनोखी शक्तियां आ जाएंगी । येरान ! अब मैं जा रही हूँ ।” कुछ पल के लिए जंगल में सन्नाटा छा गया । येरान स्तब्ध खड़ा रहा । तभी बुढ़िया ने कहा : ”बेटा! अब इन दुष्टों के सिर पर अपना हाथ फेर दो ।”

येरान ने वैसा ही किया । सब यूं उठ बैठे जैसे गहरी नींद से जागकर उठ रहे ही । येरान के हाथ को काटने वाले युवक ने येरान के पांव पकडू लिए और फूट-फूटकर रोने लगा । येरान ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया ।

येरान की जय-जयकार से सारा जंगल गूंज उठा । सभी पक्षियों ने जंगल के हर कोने में चहचहाना शुरू कर दिया, मानो वे भी येरान की जय-जयकार कर रहे हो । तोशा ने येरान को अपने कंधे पर उठा रखा था और दूसरे युवक ने बुढ़िया को ।

प्रातःकाल दहली किरण के धरती पर पड़ने से पहले ही वे सब जंगल पार कर चुके थे । सामने झील के तट पर सुनहरी महल दमक रहा था । महल के तीन ओर फलों से लदे बगीचे थे । महल बहुत बड़ा था । येरान ने सबको रहने के लिए जगह दे दी, तब भी कई कमरे खाली रह गए ।

येरान ने अपने लिए भी एण्ड कमरा चुन लिया और बुड़िया को अपने साथ ही रख लिया । महल के गोदामों में तरह-तरह के कपड़े, बढ़िया बिस्तर और ढेर सारा अनाज था । दिन-भर सबने खूब खाया-पिया और मौज-मस्ती की ।

शाम को येरान ने सबको इकट्‌ठा किया और कहा : ‘साथियो! कल प्रात: से हम सभी पुरुष बागों के परे उन खेतों में जुताई करेंगे और फसलें उगाणो । मिश्किन चाचा बच्चों को पढ़ाया करेंगे । हमारी मां-बहनें घर के काम करेंगी । यह महल और इसकी वस्तुएं किसी की अमानत हैं ।

हम फिलहाल तो इससे अपना काम चला रहे हैं, किंतु जाने से पहले इनकी पूरी भरपाई कर देंगे ।” सबने प्रसन्नतापूर्वक येरान की बात मान ली । उस रात येरान को बहुत अच्छी नींद आई । पर आधी रात के समय किसी ने उसके बालों में हाथ फेरकर आवाज दी : ”येरान! मेरे साथ परी लोक चलोगे ?”

येरान उठ बैठा । सुनहरी परी उसके सिरहाने बैठी हुई थी । ”चलोगे मेरे साथ?” परी ने फिर पूछा । “किंतु मुझे तो मेरी धरती ही प्यारी है और मेरे साथी मुझसे बहुत प्यार करते है ।” येरान ने कहा ।  ”तो ठीक है । मैं भी साधारण स्त्री बन जाती हूँ ।” कहते हुए परी ने अपने दोनों पंख उतार ।

बोली: ”तुम जैसे नेक और वीर की पत्नी बनकर मैं बहुत सुखी रहूंगी । परी लोक या स्वर्गलोक में ऐसा सुख कहां ?” ”मगर सुनहरी परी । मैं केवल अपने सुख के लिए तुम्हें कष्ट नहीं दूंगा । बेरन ने कहा फिर उसने परी के पंख उठाए और उन्हें फिर से जोड़ते हुए बोला : ”हम मानव वही तक देख पाते हैं, जहां तक हमारी औखें हमें दिखाती हैं, लेकिन तुम परियां तो धरती के हर कण को देखती रहती हो ।

मुझ जैसे न जाने कितने येरान अंधेरों में भटक रहे होंगे । उनको प्रकाश चाहिए । उन्हें रास्ता दिखाओ । हे परी! तुम लौट जाओ अपने परी लोक में ।” परी की आखें छलछला आईं । बोली : ”पता नहीं ईश्वर इतने अच्छे ईसान क्यों बनाता है ?” परी की आखों से आसू की दो बूंदें येरान के हाथों पर गिरकर मोती बन गई थी और सुनहरी परी जा चुकी थी ।

शिक्षा:

बच्चो ? इस कहानी को पढ़कर तुम्हें मालूम हो गया होगा कि येरान ने क्यों परी के साथ परी लोक या स्वर्गलोक में जाने से इंकार कर दिया । दरअसल, जो अपने देश के माटी से प्यार करते हैं, उनके लिए अपना देश स्वर्ग से भी बढ़कर सुदंर होता है । हमें भी अपने दशे की मिट्‌टी से वैसा ही प्यार करना चाहिए, जैसा येरान ने किया था । कहा गया है : ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादिपि गरीयसी ।’


Hindi Story # 5 (Kahaniya)

परी की दयालुता |

किसी नगर में एक अमीर आदमी रहता था । उसके पास बहुत पैसा था । शहर भर में उसका बहुत नाम था, किंतु इतना सब होते हुए भी उसमें घमंड नहीं था । वह दीन-फुखइयों की सहायता किया करता था ।

उसकी हवेली में मांगने वालों की हमेशा भीड़ लगी रहती थी, पर दूसरों को खुशी देने वाला वह अमीर हमेशा उदास-उदास दिखाई पड़ता था । वह ही नहीं, उसकी पत्नी भी हमेशा चिंता में डूबी रहती थी । इसका कारण था उनके घर में संतान का न होना ।

दोनों पति-पत्नी यही सोचते रहते थे कि उनके बाद इस सारी धन-दौलत का क्या होगा ? उनकी हवेली के साथ एक बहुत खूबसूरत बगीचा भी था । उस बगीचे में संग मरमर की बनी हुई कई आदमकद शुत खड़ी थी । अमीर की पत्नी को सलीके से जिंदगी बिताने का बेहद शौक था, इसलिए उसने बगीचे में परियों की मूर्तियों के पास अपने बैठने के लिए खूबसूरत जगह बनवाई हुई थी ।

यहां अनेक रंग-बिरंगे क्य खिले थे । अमीर की पत्नी माली से फूलों की मालाएं बनवाती और स्वयं आकर परियों के गले में पहनाया करती थी । एक दिन अमीर की पत्नी संतान की चिंता में बहुत ही उदास थी । उस दिन उसका जन्म दिन भी था ।

वह चुपचाप बगीचे में आकर बैठ गई और मन-ही-मन सोचने लगी : ‘बिना सतान के भी कोई गृहस्थ जीवन है । बिना बच्चों के हवेली कैसी सूनी-सूनी दीख पड़ती है ।’ बहुत देर तक वह इन्हीं विचारों में खोई रही । थोड़ी देर बाद पक्षियों का चहचहाना सुनकर उसका ध्यान टूटा ।

दूर-दूर से आकर पक्षी रैन बसेरा करने के लिए पेड़ों पर बैठ रहे थे । तभी उसने जाना कि दिन ढल रहा है । आज उसकी हवेली में जन्म दिन समारोह का भी आयोजन किया गया था । उसने सोचा : ‘जल्दी से हवेली में चलूं । पतिदेव मुझे ढूँढ रहे होंगे ।’

जैसे ही वह उठी, उसे गुनगुनाहट की मीठी आवाज सुनाई दी । वह सोचने लगी : “अरे बगीचे में कौन आ गया ? यहां तो किसी को भी आने की आज्ञा नहीं है । फिर यह आवाज तो किसी नारी की लगती है ।” यह सोचकर वह इथर-उधर देखने लगी ।

तभी श्वेत वस्त्र धारण किए एक बहुत सुंदर लड़की उसके सामने आ खड़ी हुई । उसे देखकर अमीर की पत्नी को आश्चर्य हुआ कि बाग में परियों की प्रतिमाओं में से एक परी का जो मुकुट था, वैसा ही मुकुट और ताजे फूलों की माला इस लड़की ने पहन रखी थी ।

”क्यों, मुझे पहचाना नहीं?” मुस्कराकर लड़की ने पूछा । सुनकर भी गृह-स्वामिनी चुप खड़ी रही । उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह क्या उत्तर दे । फिर वह बोली : ”कैसे पहचानूंगी ? मैंतुम्हें पहली बार देख रही हूं । तुम इतनी सुंदर हो इस शहर की तो लगती नहीं । कहा से आई हो ?”

लड़की बोली : ”रहने वाली तो मैं परी लोक की हूं मगर तुम्हारे बाग में भी तो हम रहती है । तुमने जो प्रतिमाएं लगाई हैं, वे हमें बहुत अच्छी लगती हैं । अक्सर पूनम की रात में हम इस बाग में आती हैं । तुम परियों से प्यार करती हो न ।”

अमीर की पत्नी गौर से उस लड़की को देखती हुई बोली : ”तो तुम परी हो, तभी इतनी सुंदर हो । तुम्हारेछोटे-छोटे पंख कितने सुंदर लग रहे हैं । मुझे सचमुच परियां बहुत अच्छी लगती हैं । तुम मुझे बहुत पसंद हो ।” परी बोली : “मगर परियांतो फूलेकी तरह हंसती-खिलखिलाती रहती हैं ।

तुम परियोंको प्यार तो करती हो, फिर इतनी उदास क्यों रहती हो ? हमारी तरह खिलखिलाकर हंसो ।” यह सुनकर अमीर की पत्नी का दुख उसकी आखों में भर आया । उसकी आखों से औसूटपक पड़े । फिर उसने अपने सारे दुखों को परी के सामने उड़ेलकर रख दिया ।

”दुखी मत हो ।श परी बोली: ”मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगी ।” सुनकर अमीर की पत्नी बोली : ”क्या तुम सचमुच मुझे संतान दे सकती हो ?” ”हां-हां, क्यों नहीं । ध्यान से सुनो ।” परी ने कहा: ”तुम कल सुबह नहा-धोकर इसी स्थान पर आ जाना ।

उस सामने वालेपेड़ परोंदोसेब लटकतेहुए मिलेंगे । बिना किसी कोबताए तुम उन्हेंछीलकरखा लेना । फिर देखना, तुम्हारेएक नहीं, दोसुंदर पुत्र पैदा होंगे । अब जाओ, घूमधाम से अपना जन्मदिन मनाओ ।” इतना कहकर परी अंतर्धान हो गई ।

दूसरे दिन अमीर की पत्नी नहाकर बिना किसी को बताए सीधे बाग में पहुंची । वह जल्दी-से-जल्दी सेब देखना और खाना चाहती थी । सामने ही पेड़ पर उसे दो सेब लटकते दिखाई दे गए । सेबों को देखकर अमीर की पत्नी खुश हो गई । खुशी में वह परी की बात भूल गई और एक सेब को बिना छीले ही खा गई ।

तभी उसे याद आया कि परी ने तो उसे सेब छीलकर खाने को कहा था । तब उसने दूसरा सेब छीलकर खाया । धीरे-धीरे समय बीता । थोड़े दिन बाद अमीर की पत्नी ने दो जुड़वा लडुकों को जन्म दिया । उनमें से पहला लड़का तो एकदम काला और कुरूप था ।

उसे देखकर सब डर गए । मगर दूसरा लड़का बहुत ही खूबसूरत किसी राजकुमार जैसा था । धीरे-धीरे दोनों बच्चे बड़े होने लगे । दोनों ही बहादुर, विनम्र और होशियार थे । अमीर की पली अपने दोनों बेटी से समान रूप से प्यार करती थी, लेकिन घर के नौकर-चाकर और स्वयं अमीर भी उस कुरूप लड़के से नफरत करते थे ।

दोनों जवान हुए तो उनकी शादी की बात शुरू हुई । जो भी रिश्ता आता, छोटे लड़के के लिए ही आता । मां को यह देखकर बहुत दुख होता । एक दिन उसका बड़ा बेटा बोला : ”मां! तुम इतनी दुखी क्यों रहती हो ? मैं जानता हूं तुम मुझे बहुत प्यार करती हो । तुम उदास होती हो तो मैं भी दुखी हो जाता हूं ।”

मां ने कहा : ”बेटा! भगवान ने तुम्हारे साथ अन्याय किया है, लेकिन मैं भगवान को ही क्यों दोष दूं ? यह तो मेरी भूल का नतीजा है, मैं ही इसका प्रायश्चित करूंगी ।” पूनम की रात थी । मां बगीचे में इसी तरह उदास बैठी बड़े बेटे के बारे में सोच रही थी ।

पास ही बड़ा बेटा भी बैठा था । मां बीस साल पहले परी से मिलने की कहानी बेटे को सुना रही थी ।  सुनाते-सुनाते मा को नींद आ गई । बेटा मा की सुनी कहानी के अनुसार एक परी की चुतइr के पास जाकर खड़ा हो गया । वह सोचने लगा : ‘मां ने यह भी तो बताया था कि पूनम की रात को यहां परियां आती हैं ।

काश ! आज परियां आ जाएँ और मेरा दुख दूर कर दे ।’ तभी छम-छम की आवाज सुनाई दी । उसने इधर-उधर देखा, श्वेत वस्त्र पहने एक सुंदर परी नाच रही थी । वह मंत्र-मुग्ध-सा होकर उसे देखता रह गया । परी नाच चुकी तो उस लड़के के पास आई ।

लड़का उसे देखता ही रहा । समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस लड़की से क्या  कहे ? तभी परी बोली : ”तुम मुझे नहीं पहचानते, मैं तुम्हें जानती हूं । तुम्हें ही नहीं, तुम्हारा दुख भी जानती हूं । जाओ, तुम अपने कमरे में जाकर सो जाओ ।

बस एक काम करना, खिड़की खुली ही रखना । सुबह उठोगे तो तुम्हारा दुख दूर हो चुका होगा ।” इतना कहकर परी चली गई । लड़का कमरे में आकर सो गया । रात को उसे लगा, जैसे खिड़की से आती दूधिया किरणें उसके शरीर को ठंडक पहुंचा रही हैं ।

वह एक बार को सिहर उठा । फिर करवट बदलकर सो गया । सुबह जब वह बहुत देर तक नहीं उठा तो मां ने आकर उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया । लड़के ने दरवाजा खोला तो मा हैरान होकर बोली : ”तुम कौन हो और इस कमरे में क्या कर रहे हो ?”

”मां! तुमने मुझे पहचाना नहीं । मैं तुम्हारा लाडला, तुम्हारा बड़ा बेटा ही तो हूं ।”  लड़का बोला । ”बेटे! सच, तुम मेरे बेटे हो । फिर तो यह चमत्कार हो गया । जाकर शीशे में अपना चेहरा तो देखो ।” मां खुशी से बोली । दोनों मां-बेटे दौड़कर शीशे के सामने गए ।

उसने जब अपना चेहरा देखा तो हैरान रह गया । खुशी से चहकता हुआ वह बोला : “यह उस परी का कमाल है मां! जो कल रात मुझे मिली थी ।” मां बोली : ”हां बेटे! उसी परी ने मेरी इच्छा पूरी भी की थी और उसी ने तुम्हारी सूरत भी बदल दी । सच ही कहा जाता है कि परियां बहुत दयालु होती हैं ।” यह कहते हुए मां-बेटे को लेकर बगीचे में गई, मगर वहां परी नहीं थी । परियों की मूर्तियां खड़ी मुस्करा रही थी ।

शिक्षा:

परियां ही नहीं, दूसरे प्राणी भी अपने मन पे दयालुता का भाव रखते हैं । जरूरत होती है उनके साथ अच्छे व्यवहार की । यदि अप किसी के ऊपर दयालुता भाव रखेंगे तो जरूरी है कि बह तुम्हारे व्यवहार से प्रभावित होकर अपना नजरिया बदलेगा तुम्हारे साथ भी दयालुता का ही व्यवहार करेगा । अत: प्राणी-मात्र के साथ दयालुता का व्यवहार ही करना चाहिए ।


Hindi Story # 6 (Kahaniya)

बात का घाव |

एक राजा था । उसके दो बेटे थे । बड़े बेटे का नाम आकाश था और छोटे बेटे का नाम विशाल था । बड़ा राजकुमार आकाश अक्सर जंगल में शिकार खेलने जाया करता था और राज-काज में राजा का हाथ बटाया करता था । राजा उसे चाहता भी बहुत था ।

उसने बड़ी धूमधाम से उसका विवाह एक सुंदर राजकुमारी से कर दिया । छोटे राजकुमार को गाने-बजाने का शौक था । वह बहादुर भी था । तीरंदाजी में उसका कोई मुकाबला नहीं था । उसका निशाना अचूक होता था । चित्रकार भी वह आला दर्जे का था ।

देश-विदेश घूमना उसे बहुत भाता था । उसके दो मित्र थे । एक था मद्रसेन, वह जादूगर था । दूसरा था नरहरि । वह पहलवान था । राजकुमार विशाल एक बहुत ही कुवल धावक भी था । उसे घुड़सवारी बहुत अच्छी लगती थी । तीनों में गहरी मित्रता थी ।

बड़े राजकुमार को राजा ने कुछ दिनों के लिए पड़ोस के एक देश में भेज दिया था । अत: उसकी पत्नी अपने महल में अकेली ही रहती थी । एक दिन उसने विशाल को अपने पास बुलाया और अपने हाथ का बना हुआ भोजन उसे करवाया ।

फिर पूछा : ”कहो देवरजी ! कैसा बना है खाना ?” ”भोजन तो बहुत बढ़िया बना है, लेकिन सब्जी में थोड़ा नमक कम है ।” राजकुमार विशाल ने हंसकर कहा । राजकुमार के ऐसा कहने पर उसकी भाभी चिढ़ गई । बोली : ”यदि ऐसा है तो ले आओ न अपने लिए कोई समुद्री परी ।

वही तुम्हें अच्छा खाना बनाकर खिलाया करेगी ।” ”कहां मिलेगी वह ।” विशाल ने पूछा । “मैं क्या जानुं ? ढूंढो तो मिल जाएगी, बड़े बनते हो न ।” भाभी ने तुनककर मुंह फूलते हुए कहा । छोटा राजकुमार भी गर्म हो गया । बोला : ”ताना मत मारो भाभी । अब तो समुद्र परी को लाकर ही इस घर में खाना खाऊंगा ।”

राजकुमार नाराज होकर जाने लगे तो भाभी ने कहा : ”तुम तो नाराज हो गए  देवरजी ! मैंने तो तुमसे ठिठोली की थी ।” विशाल ने कोई उत्तर न दिया । वह अपने मित्रों को साथ लेकर राजा के पास पहुंचा और बोला : ”पिताजी! मैं समुद्र परी के साथ विवाह करूंगा ।

मैं उसको ढूंढने के लिए जा रहा हूं ।” राजा ने पूछा : ”कहां मिलेगी वह समुद्र परी ?” ”पता नहीं, पर मैं पता लगाकर रहूंगा ।” राजा और उसके मंत्री ने विशाल को बहुत समझाया कि वह यह पागलपन छोड़ दे पर उसने एक न सुनी और अपनी बात पर अड़ा ही रहा ।

उसकी जिद के सामने किसी की न चली । उसकी भाभी बहुत पछताई कि ऐसी कड़वी बात उसके मुंह से कैसे निकल गई । राजा ने कहा : ”अच्छा! जब जाना ही चाहते हो तो साथ में कुछ सैनिक और धन भी ले जाओ ।”  राजकुमार बोला : ”नहीं पिताजी ! मुझे कुछ नहीं चाहिए । बस आप अपना आशीर्वाद दे दीजिए ।”

”क्यों क्या अकेले ही जाओगे?” राजा ने पूछा । ”नहीं, मेरे दोनों मित्र, भद्रसेन और नरहरि भी मेरे साथ रहेंगे ।” राजा ने तब उदास होकर भारी मन से उसे विदा किया । मंत्री ने खजाने से अशर्फियों के थैले मंगवाकर तीनों घोड़ों पर लदवा दिए । दूसरे दिन सवेरे होते ही तीनों मित्र समुद्र परी की तलाश में चल पड़े ।

वहाँ राजधानी में बड़ी चहल-पहल दिखलाई पड़ी । शहर के लोग एक खास दिशा में तेजी से बड़े चले जा रहे थे । भद्रसेन जो राजकुमार का जादूगर मित्र था, उसने एक सड़क पर जाते व्यक्ति से पूछा : ”क्या बात है मित्र! ये लोग कहाँ जा रहे हैं ?”

उस व्यक्ति ने हैरानी से उसकी ओर देखकर कहा-इस शहर में नए आए जान पड़ते हो । जानते नहीं डाकू शमशेर सिंह पकड़ा गया है । राजा उसे फांसी पर चढ़ाएंगे । वहीं जा रहे है हम सब लोग ।”  राजकुमार भी अपने साथियों के साथ वहीं जा पहुंचा । देखा, एक ऊंचे चबूतरे पर बड़े लम्बे-चौड़े डील-डौल वाला हट्‌टा-कट्‌टा आदमी खड़ा है ।

उसे ही फांसी लगने वाली थी, फिर भी वह हंस रहा था । डरना तो वह जानता ही नहीं था । उसकी आखों में तेज था और चेहरे पर रौब । राजा और उसके मंत्री को छोटे राजकुमार ने अपना परिचय दिया । राजा उसके पिता का मित्र निकला ।

उन तीनों से मिलकर वह बहुत खुश हुआ । राजकुमार ने राजा से कहा-महाराज!आप इसे फांसी क्यों देना चाहते हैं ?  राजा बोला : “यह बड़ा खूंखार डाकू है । इसने सैकड़ों लोगों को मारा है । हजारों घरों को जला दिया है ।” राजकुमार ने कहा : ”फांसी पर बढ़ाने से इसका क्या भला होगा ।

आप इसे मुझे सौंप दीजिए । मैं इसे अपने साथ लै जाऊंगा ।” राजा ने आश्चर्य से कहा : “आप इस खूंखार डाकू को साथ ले जाना चाहते हैं । मगर क्यों ?” राजकुमार ने कहा : “यह एक बहादुर इंसान है । मेरे साथ रहेगा तो मैं इअसे सुधार दूंगा ।”

राजा ने मंत्री की ओर देखा । मंत्री ने कहा : ”अगर इसने आपको भी धोखा दे दिया तो…?”  ‘नहीं देगा, मेरा मन कहता है कि यह बदल जाएगा ।’ ”ठीक है, तब तुम इसे ले जाओ अपने साथ ।”  राजा बोला : ”लेकिन इससे संभलकर रहना ।” उसके बाद शमशेर राजकुमार के साथ हो लिया ।

क्योंकि राजकुमार ने उसे फांसी पर चढ़ने से बचाया था ।  अत: वह उसका पक्का मित्र बन गया । अब चारों मित्र चल पड़े ‘समुद्र परी’ की खोज में । शमशेर ने अपने साथियों को भी साथ में ले लिया । चलते-चलते शाम हो गई । सूरज डूबने को हुआ ।

डूबते सूरज की लाल किरणों से पहाड़ों की चोटियां लाल हो उठी । पेड़ों पर पक्षी चहचहाने लगे । एक पहाड़ी नदी के किनारे पीपल के पेड़ के नीचे राजकुमार और उसके दोस्तों तथा शमशेर के साथियों ने पड़ाव डाला । राजकुमार ने कहा : ”ऐसे काम नहीं होगा ।

हम कहां तक चलते रहेंगे ? समुद्र परी के रहने की जगह का ठीक पता लगाकर ही आगे बढ़ा जाए ।” शमशेर बोला : ”पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक गुफा है । वहां एक साधु रहता है । शायद उसे पता हो समुद्र परी के बारे में ।” राजकुमार का मित्र जादूगर मित्र भद्रसेन बोला : “मेरे पास जादू के दो घोड़े हैं ।

राजकुमार और मैं उन पर चढ़कर थोड़ी ही देर में वहां पहुंचकर उनसे मिलकर समुद्र परी का पता पा लेंगे । वे घोड़े बहुत ऊंचे और तेज उड़ने वाले हैं ।” राजकुमार कहने लगा : “मैं तो यही रहुंगा । तुम और शमशेर झटपट जाकर पता लगाकर आओ । हो सके तो उस साधु बाबा को भी यहां ले आना ।”

उसके बाद दोनों जादुई घोड़ो पर सवार होकर पहाड़ चोटी पर जा । वहां उन्होंने एक सापु । बाबा चट्‌टान पर बैठे तपस्या लीन खा । सा बाबा क निकट ।  साधु बाबा बोले : उनके आने का कारण आहा शमशेर न उघु सब बाई कह सुनाई ।

सझ परक बात सुनकर वह चौक उसका पता बता पर समुद्र अल सुन रखा उसे पाना बहुत मुस्किल है । बहुतों ने उसे पाने की कोशिश में अपने प्राण गंवा दिए है ।” शमशेर बोला : ”महात्माजी ! आपका आशीर्वाद चाहिए । यह काम तो होना ही है । राजकुमार आपके कल दर्शन करेंगे ।”

साधु बाबा बोले : ”यहां से एक हजार कोस दक्षिण की दिशा में एक समुद्र है । वहां से तुम्हें जहाज पर सवार होकर समुद्र में दूर तक जाना होगा । वहां तुम्हें एक टापू मिलेगा ।  टापू की ऊंची पहाड़ी की चोटी पर एक बहुत बड़ा किला है । उस टापू की रक्षा असख्य राक्षस रात-दिन किया करते है ।

वही पर राक्षसों के राजा ने समुद्र परी को कैद कर रखा है । राक्षसों का वह राजा बहुत ही बलवान है । उसका शरीर पहाड़ जैसा है । उसके माथे से पुआ-सा निकलता है, आखें बिजली-सी चमकती हैं । बोलता है तो मानो बादल गरजता हो ।

उसके प्राण पिंजरे में रखे एक तोते में है जिसकी रक्षा उसकी मी धनुष-बाण और तलवार हाथ में लेकर करती है । सुनते है वहाँ जो जाता है वह वापस नहीं लौटता ।” “हुम्म !” जादूगर भद्रसेन बोला : ”महात्माजी! आपकी सहायता मिल जाए तो सब कुछ संभव हो सकता है ।

बस हमें आपका आशीर्वाद चाहिए ।” साधु बाबा ने अपनी पोटली टटोली और एक टोपी निकालकर कहा : ”यह एक करामाती टोपी है । इसे पहनने वाला तो सबको देख सकता है, किंतु उसे कोई नहीं देख सकता और यह है वह तलवार, जो छिपे-छिपे वार करती जाती है । यह भी रख लो ।

एक तीसरी चीज भी मेरे पास है । वह है यह त्रिशूल पानी को सुखा सकता है, आग को बुझा सकता है, आसमान में उड़ते हुए किसी भी यान या पक्षी को भी नीचे गिरा सकता है । ये तीनों करामाती चीजें मेरी तरफ से राजकुमार को दे देना । अब तुम जाओ ।

समुद्र परी को लेकर ही मुझसे मिलना । हां, लौटते समय पीछे की ओर देखने को राजकुमार से मना कर देना । समुद्र परी को लेकर तुरंत पल-भर की देर किए बिना तुम सब चल पड़ना । मैं भी अब कहीं जाने वाला हूँ । लौटने पर मैं तुम्हें यही मिलूंगा ।”

शमशेर और जादूगर भद्रसेन ने जाकर राजकुमार को सब बातें बताईं और साधु बाबा की दी हुई चमत्कारी वस्तुएं उसे सौंप दी । राजकुमार तब अपने दल के साथ दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ा । वह आगे-ही-आगे बढ़ता गया । बीच-बीच में विश्राम के लिए वे सब कुछ देर के लिए रुकते भी गए ।

एक दिन राजकुमार रात के समय एक नदी में स्नान रहा थातोएक विचित्र घटना घटी । एक जलपरी नेराजक्मुारकोपानी मेंखींच लिया और उसे लेकर अपनी रानी के पास जा पहुंची । राजक्मुा ने नदी के बीचो बीच स्वर्य कीएक सुंदर बाग में पाया ।

वहां वृक्षों की डालियो पर सुनहरे फूल और फल लगे हुए थे । सुनहरी चिड़िया चहचहा रही थी । तालाबों में रंग-बिरंगी मछलियां तैर रही थी । बाग के बीच में एक संग मरमर का खूबसूरत महल बना था । उसे एक बहुत बड़े कमरे में पहुंचाया गया ।

उस कमरेकी छत और दीवारे सोने की बनी थी । सब जगह हीरे, नीलम और पन्ने बिछे थे । कमरे के मध्य में एक फेर सिंहासन था, जिसमें हीरे-पल्ले-चमचमा रहे थे । बीस-पच्चीस परियांहाथ जोड़ेखड़ी थी । सिंहासन पर सोने का मुकुट और लाल रग की पोशाक पहने परियों की रानी ‘लाल परी’ बैठी थी ।

उसके शरीर से करता की लहरे उठ रही थी । उसके मुख पर एक अनोखी ज्योति जगमगा रही थी । फूलेकी भीनी-भीनी सुगध उसके शरीर से निकलकर चारों ओर फैल रही थी । जलपरी ने राजकुमार की ओर संक्ते करके लाल परी से कहा : ‘महारानीजी ! यह युवक रात के समय नदी में स्नान कर रहा था ।

आपके आदेशानुसार रात के समय नदी में स्नान करना वर्जित है । अत: मैं इसे आपके पास ले आई हूं ।’  परियों की रानी ने अपनी जादूकी छड़ी उठाई और कहा : ”ठीक है । अब तुम सब यहां से चली जाओ । हम इससे अकेले में वार्तालाप करेंगे ।”

जब सब परियां वही से चली गईं तो परी ने कहा : ”युवक ! तुम कौन हो ? और कहा जा रहे हो ? तुम्हारे जैसा खूबसूरत नौजवान मैंने पहले कभी नहीं देखा । तुम यही पर क्यों नहीं रुक जाते ?”  राजकुमार ने कहा : ”मैं एक देश का राजकुमार हू ।

मैं समुद्र परी की तलाश में निकला हूँ । मेरे संगी-साथी भी नदी के किनारे ठहरे हुए है । मुझे जाने दीजिए । वे मेरा इतजार कर रहे होंगे ।”  परी रानी मुस्कराकर बोलीं : ”विवाह करोगे उससे ? वह मेरी सहेली है । उसको एक बलवान राक्षस चुराकर ले गया है ।

कैद कर लिया है उसने उसे । वहा तक पहुचना बहुत कठिन है । अपने साथियों के साथ यही रहो । यहां मेरा राज्य है और तुम चाहो तो यहा के राजा बन सकते हो ।”  राजकुमार बोला : ”पहले आपकी सहेली को कैद से छुड़ा लाऊ, फिर आकर आपकी बात पर गौर करूंगा ।

वैसे सुंदर आप भी कम नहीं हैं ।” परी रानी मुस्कराई । ऐसा लगा जैसे चारों ओर फूल बरसने लगे ही । वह बोली : ”अच्छा ! यही सही, पर लौटते समय यहाँ जरूर आना । अमृत रस पी जाओ । तुममें दस हजार हाथियों का बल आ जाएगा और यह झोली लेलो ।

इससे जितनी भी कोई भी चीज मांगोगे, सब मिल जाएगी । बढ़िया स्वादिष्ट भोजन, हीरे-जवाहरात, अशर्फी सब-कुछ । इसमें एक ऐसी जड़ी है, जिसको सुंघाने से घाव तुरंत भर जाते हैं और इसको हथेली पर रगड़ते ही आस-पास के लोग बेहोश हो जाते है ।

मेरे पास तेज उड़ने वाला एक उड़नखटोला भी है । उसमें जितने भी लोग बैठेंगे, उसी के अनुपात से उसका आकार बढ़ जाएगा । वह ताली बजाने पर अपने आप ही आसमान में ठहर जाएगा । आग और पानी में भी वह उड़ता रहेगा । वह भी मैं तुम्हें दे देती हूं ।” यह कहकर परी रानी ने ताली बजाई ।

दो परियां तुरत वहां आ पहुंची । परी रानी ने दोनों के कान में कुछ कहा । जादू की छड़ी पुमाई तो सब चीजें वहां आ गईं । दोनों परियों ने राजकुमार को नदी के किनारे पहुंचा दिया । राजकुमार ने परी रानी से प्राप्त की हुई सारी चीजें अपने साथियों को दिखाईं ।

जादूगर बोला : ”राजकुमार। सचमुच आप बहुत भाग्यशाली हैं । ऐसी अनोखी चीजें आसानी से नहीं मिला करतीं ।” राजकुमार का दूसरा मित्र बोला : ”अब तो समुद्र परी हमें मिलकर ही रहेगी ।” शमशेर सिंह बहुत खुश था । उसने कहा : ”राजकुमार! अब हम चारों को उड़न खटोले में बैठकर जल्दी-से-जल्दी समुद्र परी के पास पहुचना चाहिए ।

जाद्रार मित्र तुम अपना जादू का झोला भी साथ ले लो । हां, आवश्यक सामग्री ले चलना मत भूलना ।” उड़न खटोले ने उन्हें एक ही दिन में समुद्र के किनारे पहुंचा दिया । पहलवान मित्र नरहरि को किनारे छोड्‌कर तीनों मित्र उडनखटोले में बैठकर समुद्र में स्थित टापू पर पहुंचे ।

भद्रसेन ने जादुई घोड़ा अपने पहलवान मित्र नरहरि को देकर कहा : ”तुम पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर आग जलाए रखना । ध्यान रहे, आग बुझने न पाए । हम सब जल्दी ही लौटे । लड़ने के लिए तैयार रहना । हमारा पीछा करने के लिए बहुत-से राक्षस दौड़े-दौड़े आएंगे ।

उस समय तुम्हें अपनी बहादुरी का प्रदर्शन करना है ।” टापू पर पलकर उन्होंने ऊंची पहाड़ी पर बने ण्डा बड़े किले को देखा । रात के अंधेरे में सबकी निगाहें बचाते हुए वे किले के ऊंचे बुर्ज पर पहुंच गए । राजकुमार ने महात्मा की दी हुई टोपी पहनी, एक हाथ में परी रानी की बड़ी-बूटी और दूसरे हाथ में महात्मा की बिना रुके खचाखच चलने वाली तलवार ले ली ।

भद्रसेन ने जादू का झोला सभाला और शमशेर ने साधु बाबा का त्रिशूल हाथ में ले लिया । भद्रसेन ने अपने और शमशेर के ऊपर जादू की चादर डाल रखी थी । उन्हें कोई देख नहीं पा रहा था । जादू के थैले से निकालकर भद्रसेन ने सबकी आखों में सुरमा लगा दिया था, इसलिए वे सब दूर-दूर की चीजें अंधेरे में भी देख सकते थे ।

त्रिशुल हाथ में लेकर तीनों ने छुआ और बे-खटके किले की खाई और आग की लपटों से बेदाग बच निकले । उनका उड़नखटोला बिना आवाज किए उड़ रहा था । त्रिशूल को हाथ में लेकर शमशेर ने किले की छत पर अपना उड़नखटोला रोका ।

भद्रसेन के पास एक ऐसा यत्र था, जिसकी सुई किले में पुसते ही समुद्र परी के कमरे की ओरघूम गई । राजकुमार आगे बढ़ा । शमशेर ने अपने हाथ में पकड़े त्रिभूल से उस दरवाजे को धक्का दिया तो कमरा अपने आप खुल गया । राजकुमार ने तुरंत बूटी हथेली पर रगड़ी ।

बूटी रगड़ते ही आस-पास के सभी लोग बेहोश हो गए । अपनी तलवार से राजकुमार ने समुद्र परी के बंधन काटे । भद्रसेन ने तुरंत उसे अपने जादू के थैले में बंदकर जादू से उडनखटोले में पहुंचा दिया । दूसरे कमरे में राक्षस गहरी नींद में सो रहा था, उसकी मां पिंजरे में बंद तोते की रक्षा कर रही थी ।

राजकुमार ने फिर से हथेली पर बूटी रगड़ी । ऐसा करते ही राक्षस की मां बेहोश हो गई । उसके बेहोश होते ही राजकुमार ने तोते की गर्दन मरोड़ दी । राक्षस सोते-सोते ही ढेर हो गया । अब तीनों ने जल्दी-जल्दी एक चोर रास्ते का पता लगाया और छत पर पहुंच गए ।

फिर वे तत्काल ही वहां से उड़ गए । समुद्र परी को तो भद्रसेन ने पहले ही अपने जादू से थैले में बंद करके अपने विमान पर पहुंचा दिया था । थोड़ी ही देर बाद राक्षसों की बेहोशी टूटी । सारे पहरेदार जाग उठे । अपने स्वामी को मरा देखा तो सब राक्षसों में तहलका मच गया ।

तब तक उड़नखटोला काफी दूर जा चुका था । राक्षसों ने अपने यानी पर सवार होकर उनका पीछा किया, पर शमशेर ने उन्हें चमत्कारी त्रिभूल की सहायता से हवा में ही काट गिराया । इधर राजकुमार भी बूटी अपने हथेली पर रगड़ रहा था, जिसके कारण राक्षस बेहोश होते जा रहे थे ।

उसकी जादुई तलवार भी छपाछप चल रही थी । राजकुमर और उसके साथी जादुई टोपी और जहई चादर ओढ़े हुए थे इसलिए वे राक्षसों को नजर नहीं आ रहे थे । बात-ही-बात में सबने मिलकर राक्षसों का सर्वनाश कर दिया । जो किसी तरह से द्वीप पर पक्ष गए उनका सफाया नरहरि ने कर दिया ।

फिर जब मैदान पूरी तरह से साफ हो गया तो वे सब उडनखटोले में बैठकर वापस लौट गए । दूसरे दिन सब पहाड़ी वाली गुफा में साधु बाबा से मिले । उन सबको प्रसन्न देखकर साधु बाबा ने समझ लिया कि उनका काम बन गया है । राजङ्कार ने साधु बाबा के चरण छूए ।

साधु बाबा ने आशीर्वाद देते हुए कहा : “ईश्वर उन्हीं की मदद करता है जो हिम्मत से काम लेकर आगे बढ़ते हैं और मुसीबतों से घबराते नहीं हैं । राजकुमार एक नेक दिल इसान है, वह बहादुर है और उसका दिल साफ है ।” राजकुमार जब साधु बाबा की दी हुई चीजें लौटाने लगा तो वे बोले: “बच्चा ! मैंने यह चीजें तुम्हें भेंट में दी थी । अब यह तुम्हारे काम आएंगी । इन्हें तुम अपने पास ही रखी ।”

सापु बाबा से विदा लेकर चारों मित्र परी रानी के पास पहुंचे । वहा शमशेर के साथी उनका इंतजार कर रहे थे । परियों की रानी अपनी सहेली समुद्र परी से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई ।  अभी तक वह राजकुमार की सुंदरता पर ही मोहित थी, अब उसकी वीरता की ओर उसका ध्यान गया ।

वह सोचने लगी कि ऐसी सुंदरता और वहासरी बहुत कम देखने को मिलती है । राजकुमार के वहां पहुंचने पर परियों ने बड़ा उत्सव मनाया । राजकुमार ने गाया-बजाया । उसके गाने से समुद्र परी बहुत खुश हुई । परी रानी ने राजकुमार की बहादुरी की बहुत प्रशंसा की ।

परी रानी ने कहा : ”तुमको दो-दो परियां मिली हैं तो तुम्हारे साथियों को भी कम-से-कम एक-एक तो मिलनी ही चाहिए । चलो हम लोग चलते है । तुम्हारे दोस्त अपनी मनपसंद परियों को स्वयं चुन लेंगे ।”  राजकुमार ने मुस्कराकर कहा-यह तो आपने मेरे मन की बात कह दी ।

चारों दोस्त पांच परियों को लेकर अपने देश की ओर बड़े । ये लोग नगर से दूर एक तालाब के किनारे स्थित एक बाग में उतरे । नरहरि को राजझार ने अपने पिता के पास भेजा । बड़ा राजझार अपने छोटे भाई के आने से बह्म प्रसन्न ह्मा ।

उसक बड़ा भाई उसी दिन से अपनी पत्नी से नाराज था, जिस दिन से उसने अपने देवर को समुद्र परी लाने के लिए ताना मारा था । वह कहता था कि जली-कटी बातें सुनकर उसका छोटा भाई घर छोड्‌कर चला गया था । हंसी में भी बेसमझी की बात करना ठीक नहीं ।

अक्सर बात बिगड़ जाती है, तब पछताना ही पड़ता है । राजा, बड़ा राजकुमार तथा मंत्री सभी छोटे राजकुमार का स्वागत करने के लिए बाग में पहुंचे । खूब धूमधाम और गाजे-बाजे के साथ छोटे राजकुमार का स्वागत किया गया ।

हाथियों पर सोने-चांदी के हौदों में राजा, राजकुमार, रानियां तथा बड़ा राजकुमार बैठा था । उसके पीछे सजे हुए घोड़ों पर बड़े-बड़े सरदार तथा दरबारी थे । बीच में वर्दी पहने हथियारबंद सिपाहियों की भारी पलटन थी । समुद्र परी और परी रानी ने अपने जादू से बड़े-बड़े संगमरमर के महल क्षण-भर में ही तैयार कर दिए ।

परी रानी द्वारा जादुई छड़ी पुमाते ही वहां बड़ी धूमधाम और ठाठ-बाट हो गए । परियों ने जादू के जोर से अपने मां-बाप को बुलवा लिया । चारों तरफ सोने-चांदी से मड़े रंग-बिरंगे । शामियाने लग गए । रात-भर जश्न मनाया गया ।

परियों के वैभव को देखकर सभी चकित रह गए । दूसरे दिन छोटे राजकुमार के तीनों दोस्तों का विवाह तीन परियों से हो गया । बड़ा राजकुमार बहुत खुश था । उसने अपने छोटे भाई को प्यार से गले लगाया । राजा ने छोटे राजकुमार के कहने पर शमशेर को सेनापति बना दिया ।

राजकुमार के दोस्त जादूगर भद्रसेन और पहलवान नरहरि को भी राजदरबार में अच्छे पदों पर नियुक्त कर दिया गया । बड़े राजकुमार की रानी बहुत लज्जित थी । वह कटी-कटी-सी रहती थी । वह खुले मन से किसी से बोल भी नहीं पाती थी ।

एक दिन छोटा राजकुमार दोनों परियों को लेकर अपनी भाभी के पास पहुंचा और प्यार से अपनी दोनों पत्नियों से कहा : ”मेरी इन भाभी के झुककर चरण छुओ । इन्हें प्रणाम करो । इन्हीं के कारण मैं तुम्हें पा सका हूं । अगर ये न होती तो हम सब कभी मिल नहीं पाते ।”

दोनों परियों ने झुककर अपनी जेठानी के चरण छुए । छोटा राजकुमार बोला : ”भाभी! तुमने मुझ पर बहुत उपकार किया है । न तुम उस दिन मुझे समुद्र परी लाने को उकसाती और न मैं कभी समुद्र परी को पाता । यह सब तुम्हारे उसी ताने की वजह से संभव हुआ है ।”

भाभी ने हंसकर कहा : ”शर्मिंदा मत करो देवरजी ! मैंने तो उस दिन तुमसे हंसी-हंसी में वह बात कही थी । पर तुम सहज ही बुरा मान गए । मैं सच कहती है बाद में मुझे बहुत दुख हुआ । पर करती भी क्या ? जबान से निकली हुई बात और तरकश से छोड़ा हुआ तीर कभी वापस नहीं आता है ।”

छोटे राजकुमार ने जब भाभी की ठिठोली की बात समुद्र परी को बताई तो वह बहुत हंसी । वह मुस्कराकर बोली : ”तब तो मैं आज अपने हाथों से भोजन बनाकर तुम दोनों को खिलाऊंगी । पर मेरे बनाए भोजन में यदि कुछ कमी रह जाए तो मुझे क्षमा कर देना और अपना मनपसंद भोजन बनवाने के लिए किसी और परी को ले आना ।”

परी की बात सुनकर सब हस पड़े । इतने में बड़ा राजकुमार भी वहा पहुचा । छोटा राजकुमार बोला : ”बड़े भैया आ गए है । अब तुम हम सबके लिए खाना परोस दो । बड़े जोर की भूख लगी है ।” समुद्र परी के हाथ का बना खाना सब लोगों ने बड़े चाव से खाया ।

सब उसकी प्रशसा करने लगे । छोटे राजकुमार ने अपनी भाभी से पूछा : ”भाभी! भोजन कैसा बना है ? कुछ कमी तो नहीं है ?”  भाभी मुस्कराकर बोलीं : ”यदि मैं यह कह दूं कि नमक ज्यादा है तो कौन-सी नई परी लाअणै ?” इस पर सब ठहाका मारकर हंस पड़े । वातावरण मुखरित हो उठा ।

शिक्षा:

हंसी-मजाक करते समय सयंम बरतो । कभी-कभी मजाक में कही हुई बात मी झगड़े का कारण बन जाती है । महाभारत का युद्ध द्रोपदी से परिहास करने के कारण ही हुआ ।


Hindi Story # 7 (Kahaniya)

आलसी का भाग्य |

पहले समय में यूरोप के एक देश ‘चैक’ में एक गरीब आदमी रहता था । उसके तीन बेटे थे । दो बड़े बेटे तो बहुत समझदार थे, किंतु तीसरा बेटा इयान थोड़ा कम होशियार था । वह अक्सर भट्‌टी के पास बैठा रहता था । लोग मजाक में उसे भट्‌टी झांकने वाला कहते थे ।

(चैक पहले अपने पड़ोसी देश स्तोवाकिया के साथ सम्मिलित था । अत: दोनों देश मिलकर चैकस्तोवाकिया कहलाते थे ।) एक दिन उसके पिता नेउससे कहा : “अब तुम बड़े हो गए हो । घरकी हालत तुम लोग जानते ही हो । अब तुम सब अपना-अपना कारोबार करो ।”

दूसरे दिन वे तीनों भाई घर से निकल पड़े । चलते-चलते वे एक चौराहे पर जाकर खड़े हो गए । कुछ देर बाद दोनों बड़े भाई सामने की ओर चल पड़े । जाते-जाते वे अपने छोटे भाई से बोले : ”तुम उधर चले जाओ । तुम्हारे लिए सबसे अच्छा रास्ता वही है ।” वे इशारा करके आगे बढ़ गए ।

इयान उसी रास्ते पर चल पड़ा । जंगलों से होताहुआ वह एक मैदान में पहुंचा । वहां तीन पेड़ खड़े थे । उसने पहले कभी वैसे पेड़ नहीं देखे थे । वह पेड़ोंके नीचे बैठ गया । थोड़ी देर बाद उसे पेड़ोंके पीछे एक चट्‌टान दिखाई दी । वह उठकर उस चट्‌टान के पास पहुंचा । वहा उसने चट्‌टान में एक छोटा-सा दरवाजा देखा ।

कुछ झिझकता हुआ वह उस दरवाजे में पुस गया । अंदर पहुचा तो उसे एक महल दिखाई दिया । इयान उस महल में चला गया । वह अंदर पहुंचा तो उसे एक राजकुमारी दिखाई दी । राजकुमारी ने उसका स्वागत किया । उसने कहा : ”इयान! मैं बहुत दिनों से तुम्हारा इंतजार कर रही थी ।

मुझे यकीन था कि तुम एक दिन यहां जरूर आओगे ।” इयान हैरान था । वह मन-ही-मन सोचने लगा : ‘यह राजकुमारी मेरा नाम कैसे जानती है ?’ राजकुमारी ने इयान को भोजन कराया । खाना खाकर वह सो गया । सुबह उसकी आख खुली तो उसने देखा, राजकुमारी नाश्ता लिए उसकी प्रतीक्षा कर रही है ।

नाश्ता करने के बाद इयान ने कहा : ”तुमने मेरी बहुत सेवा की है । बताओ, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं ?” राजकुमारी बोली : ‘इस चट्‌टान के बाहर तीन पेड़ खड़े हुए हैं । तुम उन पेड़ों को जड सहित गिरा दो । फिर तुम जो कुछ मांगोगे, मैं तुम्हें वही दे दूंगी ।’

इयान ने कहा : ”ऐसा ही होगा ।” यह कहकर वह महल से बाहर निकल गया । वह पेड़ों को काटने में जुट गया । कई दिन तक लगातार काम करने के बाद उसने उन तीनों पेड़ों को काट डाला । फिर वह राजकुमारी के पास पहुंचा ।

राजकुमारी ने इयान से कहा : ”तुम उन पेड़ों की लकड़ियों को इकट्‌ठा कर लो और उनमें अण लगा दो ।” इयान ने ऐसा ही किया । उसने लकड़ियां इकट्‌ठी करके आग के हवाले कर दी । वह थक गया था, इसलिए थोड़ी दूर जाकर जमीन पर पड़कर आराम करने लगा । तुरत ही उसे नींद ने आ घेरा ।

अगले दिन उसकी नींद टूटी तो उसने स्वयं को एक सुंदर कमरे में पाया । उसके शरीर पर सुंदर कपड़े थे । अनजानी जगह देखकर वह घबरा गया । तभी वहां एक नौकर आया । उसने इयान से पूछा : ”मालिक! किसी चीज की आवश्यकता हो तो आप मुझे आदेश दें ।”

इयान आश्चर्यचकित था । यह क्या हो रहा है ? तभी तीन युवक राजसी वस्त्र और आभूषण लेकर उसके पास पहुंच गए । उन्होंने इयान को राजसी वस्त्राभूषण पहनाए । अब इयान किसी राजकुमार जैसा लगने लगा, तभी दरवाजा खुला और पांच-छ: सुँदर राजकुमारियां वहां आ पहुंची ।

उन्होंने इयान को धन्यवाद दिया और कहा : ”आप हममें से किसी भी एक राजकुमारी के साथ अपना विवाह कर सकते हैं ।” इयान असमंजस में था । सभी सुंदर थीं । किसके साथ करे वह अपना विवाह ? फिर वह बोला : ”मैं उसी राजकुमारी के साथ विवाह करूंगा, जिसने मेरी सेवा की थी ।

इस पर वह राजकुमारी तो वहीं रह गई, शेष राजकुमारियां कमरे से बाहर चली गईं ।” राजकुमारी ने इयान को बताया कि उन तीन पेड़ों की वजह से ही उनका सारा राज्य शापग्रस्त था । पेड़ों के गिरते ही वे शाप से मुक्त हो गए हैं । इयान और राजकुमारी का विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया ।

इयान वहां का राजा बन गया । एक दिन इयान ने सोचा-माता-पिता और भाइयों से मिलने के लिए मुझे अवश्य जाना चाहिए ।’ यह सोचकर वह अपनी रानी के साथ रथ में बैठकर अपने गांव को चल दिया । सैनिक भी उसके साथ थे ।

जैसे ही राजा इयान का रथ गांव के निकट पहुंचा तो गाव वालों ने राजा का स्वागत किया । एक स्त्री की आखों में आसू देखकर इयान ने उससे पूछा : “मां ! क्या बात है ? आपकी आखों में औसू क्यों हैं ?” स्त्री ने उत्तर दिया : ”महाराज! मेरा सबसे छोटा बेटा बहुत दिन से घर नहीं लौटा है ।

पता नहीं वह कहां और किस हाल में है । मुझे उसकी ही चिंता खाए जा रही है । उसे याद करते ही मेरी आखों में आंसू आ गए ।” राजा इयान ने कहा : ”मां! आप चिंता मत कीजिए । आपका बेटा अवश्य वापस  आएगा ।” कहकर वह आगे बढ़ गया । स्त्री अपने घर को चली गई ।

गांव वालों को बिल्लु पता न था कि उस स्त्री का खोया हुआ बेटा इयान उसके सामने राजा बना खड़ा है । भीड़ में इयान ने अपने घर वालों को देखते ही पहचान लिया था । इयान जिन कपड़ों को पहनकर घर से गया था, वह उन कपड़ों को अपने साथ लाया था ।

वह उन्हीं कपड़ों को पहनकर अपनी मां से मिलने को गया । इयान को देखते ही उसकी मां खुशी से धूम उठी । उसने इयान को अपने गले से लगा लिया । इयान ने मां से कहा कि अभी वह उसके दोनों बड़े भाइयों को इस बारे में कुछ न बताए ।

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थोड़ी देर बाद उसके दोनों बड़े भाई घर आए । उन्होंने इयान से कहा : ”अभी-अभी हमने राजा को गांव में आते देखा था । तुम थोड़ी देर पहले आ जाते तो तुम भी राजा को देख लेते ।” इयान घर वालों से विदा लेकरराजा से मिलने के लिए चल दिया । भाइयों ने सोचा : ‘यह मूर्ख है । पता नहीं, राजा से क्या कह बैठे ?’

यह सोचकर वे उसके पीछे-पीछे चल पड़े । भाइयों ने जब देखा कि इयान रनिवास की ओर जा रहा है तो वे चौंके । तुरंत उन्होंने आगे बढ्‌कर इयान को अंदर जाने से रोका । बड़ा भाई उससे बोला : ”इयान ! इधर तुम कहां जा रहे हो ? राजा को मालूम हो गया तो तुम्हारी खैर नहीं ।

तुम भट्‌टी के पास ही बैठो । यहां तुम्हारा क्या काम ?” इयान फिर भी न माना तो वे उसे जबरदस्ती रोकने लगे । सैनिकों ने जब यह देखा तो उन्होंने इयान के भाइयों को वहा से हटाकर एक तरफ कर दिया । एक सैनिक बोला : ”तुम लोग राजा पर हाथ उठा रहे हो । पागल तो नहीं हो गए ?”

इयान के भाई आश्चर्यचकित थे । वे इयान की ओर देखने लगे । तभी इयान के माता-पिता भी वहां आ गए । इयान मुस्करा रहा था । इसके बाद इयान ने पेड़ काटने से लेकर राजा बनने तक की कहानी सबको सुनाई । लोग इयान की जय-जयकार करने लगे । अब वह अपने घर वालों के साथ महल में आराम से रहने लगा ।

शिक्षा:

इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति को उतना ही मिलता है ? जितना उसके भाग्य में लिखा होता है । कहते हैं कि वक्त से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी कोई चीज नहीं मिला करती । अत: हम कर्मशील तो अवश्य रहें, किंतु फल की चिंता छोड़ दो । देने वाला प्रमु है । वही सबको व्यक्ति के कर्मों के अनुसार उसका प्रतिफल देता है ।